श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार, जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तब भगवान कल्कि का जन्म होगा । कल्कि का अवतरण सावन महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा । यही कारण है कि, हर साल इस तिथि को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है । श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है । इसके अनुसार, कलयुग के अंत में जब पाप बढ़ जाएगा, तब कल्कि अवतार में जन्म लेकर भगवान पापियों का संहार करेंगे और फिर से धर्म की स्थापना करेंगे । इसके बाद सतयुग की शुरुआत होगी । उत्तरप्रदेश के संभल (अभी तक गुप्त ग्राम) गांव में उनका जन्म होगा । उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा । प्रारंभ में एवं एक विद्वान किन्तु साधारण प्रभाव वाले व्यक्ति रहेंगे किन्तु 48 वर्ष की अवस्था मे प्रभु कल्कि भगवान परशुराम के सानिध्य में आकर ज्ञान प्राप्त करेंगे और उनके साथ मिलकर धर्म की स्थापना करेंगे । भगवान कल्कि का दो विवाह होगा । उनका विवाह मां वैष्णो देवी जी से होगा ।