जैन दर्शन के महान ग्रंथ (तत्त्वार्थ सूत्र) अध्याय 7 का सूत्र जो बता रहा है कि सुख कैसे प्राप्त करें :
The great Jain text (Tattvartha Sutra) has a sutra from Chapter 7 on how to attain happiness:
भूतव्रत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोग:क्षान्ति:
शौचमितिसद्वेद्यस्य।।१२।।
अर्थ:
• भूत-व्रत : प्राणिमात्र की रक्षा करना, अहिंसा का पालन।
• अनुकम्पा : दया, करुणा, सब जीवों पर संवेदना।
• दान : द्रव्य, आहार, औषधि, ज्ञान आदि का दान।
• सराग : राग के साथ किए गए पुण्यकर्म।
• संयम : इन्द्रिय-निग्रह, व्रत-पालन, आत्मसंयम।
• योग : मन, वचन और काय की गतिविधियाँ।
• क्षान्ति : क्षमा, सहनशीलता।
• शौच :पवित्रता, आंतरिक और बाहरी शुद्धि।
• इति सद्वेद्यस्य : यही सात्त्विक वेद्य (सात्त्विक सुख) के कारण हैं।
भावार्थ
जब कोई:
• जीवों पर दया करता है
• दान देता है,
• संयम और सदाचार का पालन करता है,
• सहनशीलता और क्षमा का अभ्यास करता है,
• शौच (त्याग ) पवित्रता रखता है,
• और इन सबका प्रयोग मन-वचन-काय की शुद्ध गतिविधियों में करता है,
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