"यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥"
जो भक्त मेरे जिस स्वरूप की श्रद्धा से पूजा करना चाहता है, मैं उसी स्वरूप में उसकी श्रद्धा को स्थिर कर देता हूं.
Whichever form of mine the devotee wants to worship with devotion, I establish his faith in that form.