राधिका स्याम सुंदर कौं प्यारी।
नख-सिख अंग अनूप बिराजित, कोटि चंद दुति नारी॥
इक छिनु संग न छाड़त मोहन, निरखि-निरखि बलिहारी।
छीतस्वामी गिरिधर बस जाके, सो वृषभानु-दुलारी॥
हम समझे थे कान्हा कही कुंजन में होगा,
अभी तो मिलन का हमने सुख नहीं भोगा
ओ सुनके प्रेम कि परिभाषा,
मन में बंधी थी जो आशा,
आशा भई रे निराशा,
झूटी दे गया दिलाशा
हमें श्याम न मिला
देता है कन्हाई जिसे प्रेम कि दिशा,
सब विधि उसकी लेता भी है परीक्षा
ओ कभी निकट बुलाये, कभी दूरियाँ बढ़ाये,
कभी हषायें रुलाये छलिया हाथ नहीं आये
हमें श्याम ना मिला…
Credit- Bhaktipath
Pujay shre Indreshji maharaj