बस हो रहा है
ना मैं चला रहा,
ना कोई और —
नियमों में बंधा हुआ एक मुक्त नृत्य,
जो हर पल बनता, मिटता, फिर बनता है।
ना मैं सोचता —
मैं तो सोच के पार बैठा हूँ,
जहाँ "मैं" भी घटित हो रहा है।
ना दिशा, ना गति,
फिर भी चल रहा है सब —
दृष्टा, दृष्टि और दृश्य— सब एक।
और उस एक के पार... मौन।
वही उत्तर है। वही मैं हूँ। वही तुम भी।
🌷🪷🌞🪷🌷