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Скачать или смотреть 🙏शिव पुराण अठारहवां अध्याय🙏

  • Shiv Bhakti Sagar
  • 2025-09-17
  • 29
🙏शिव पुराण अठारहवां अध्याय🙏
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Описание к видео 🙏शिव पुराण अठारहवां अध्याय🙏

अठारहवां अध्याय


बंधन और मोक्ष का विवेचन शिव के भस्मधारण का रहस्य


ऋषि बोले- सर्वज्ञों में श्रेष्ठ सूत जी ! बंधन और मोक्ष क्या है? कृपया हम पर कृपा कर हमें बताएं?


सूत जी ने कहा-महर्षियो! मैं बंधन और मोक्ष के स्वरूप व उपाय का वर्णन तुम्हारे लिए कर रहा हूं। पृथ्वी के आठ बंधनों के कारण ही आत्मा की जीव संज्ञा है। अर्थात बंधनों में बंधा हुआ जीव 'बद्ध' कहलाता है और जो उन बंधनों से छूटा हुआ है उसे 'मुक्त' कहते हैं। प्रकृति, बुद्धि, त्रिगुणात्मक अहंकार और पांच तन्मात्राएं आदि आठ तत्वों के समूह से देह की उत्पत्ति हुई है। देह से कर्म होता है और फिर कर्म से नूतन देह की उत्पत्ति होती है। शरीर को स्थूल, सूक्ष्म और कारण के भेद से जानना चाहिए। स्थूल शरीर व्यापार कराने वाला, सूक्ष्म शरीर इंद्रिय भोग प्रदान करने वाला तथा शरीर को आत्मानंद की अनुभूति कराने वाला होता है। कर्मों के द्वारा ही जीव पाप और पुण्य भोगता है। इन्हीं से सुख-दुख की प्राप्ति होती है। अतः कर्मपाश में बंधकर जीव शुभाशुभ कर्मों द्वारा चक्र की भांति घुमाया जाता है। इससे छुटकारा पाने के लिए महाचक्र के कर्ता भगवान शिव की स्तुति और आराधना करनी चाहिए। शिव ही सर्वज्ञ, परिपूर्ण और अनंत शक्तियों को धारण किए हैं। जो मन, वचन, शरीर और धन से बेरलिंग या भक्तजनों में शिव भावना करके उनकी पूजा करते हैं, उन पर शिवजी की कृपा अवश्य होती है। शिवलिंग में शिव की प्रतिमा ने शिव भक्तजनों में शिव की भावना करके उनकी प्रसन्नता के लिए पूजा करनी चाहिए। पूजन शरीर, मन, वाणी और धन से कर सकते हैं। भगवान शिव पूजा करने वाले पर विशेष कृपा करते हैं और अपने लोक में निवास का सौभाग्य प्रदान करते हैं। जब तन्मात्राएं वश में हो जाती हैं, तब जीव जगदंबा सहित शिव का सामीप्य प्राप्त कर लेता है। भगवान का प्रसाद प्राप्त होने पर बुद्धि वश में हो जाती है। सर्वज्ञता और तृप्ति शिव के ऐश्वर्य हैं। इन्हें पाकर मनुष्य की मुक्ति हो जाती है। इसलिए शिव का कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए उन्हीं का पूजन करना चाहिए। शिवक्रिया, शिव तप, शिवमंत्र-जाप, शिवज्ञान और शिव ध्यान प्रतिदिन प्रातः से रात को सोते समय तक, जन्म से मृत्यु तक करना चाहिए एवं मंत्रों और विभिन्न पुष्पों से शिव की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव का लोक प्राप्त होता है।


ऋषि बोले- उत्तम व्रत का पालन करने वाले सूत जी! शिवलिंग की पूजा कैसे करनी चाहिए? कृपया हमें बताइए?


सूत जी ने कहा-ब्राह्मणो! सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले लिंग के स्वरूप का मैं तुमसे वर्णन कर रहा हूं। सूक्ष्मलिंग निष्कल होता है और स्थूल लिंग सकल। पंचाक्षर मंत्र को स्थूल लिंग कहते हैं। दोनों ही लिंग साक्षात मोक्ष देने वाले हैं। प्रकृति एवं पौरुष लिंग के रूपों के बारे में एकमात्र भगवान शिव ही जानते हैं और कोई नहीं जानता। पृथ्वी पर पांच लिंग हैं, जिनका विवरण मैं तुम्हें सुनाता हूं।


पहला 'स्वयंभू शिवलिंग', दूसरा 'बिंदुलिंग', तीसरा 'प्रतिष्ठित लिंग', चौथा 'चरलिंग', और पांचवां 'गुरुलिंग' है। देवर्षियों की तपस्या से संतुष्ट हो उनके समीप प्रकट होने के लिए पृथ्वी के अंतर्गत बीजरूप में व्याप्त हुए भगवान शिव वृक्षों के अंकुर की भांति भूमि को भेदकर 'नादलिंग' के रूप में व्यक्त हो जाते हैं। स्वतः प्रकट होने के कारण ही इसका नाम 'स्वयंभूलिंग' है। इसकी आराधना करने से ज्ञान की वृद्धि होती है। सोने-चांदी, भूमि, वेदी पर हाथ से प्रणव मंत्र लिखकर भगवान शिव की प्रतिष्ठा और आह्वान करें तथा सोलह उपचारों से उनकी पूजा करें। ऐसा करने से साधक को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवताओं और ऋषियों ने आत्मसिद्धि के लिए 'पौरुष लिंग' की स्थापना मंत्रों के उच्चारण द्वारा की है। यही 'प्रतिष्ठित लिंग' कहलाता है। किसी ब्राह्मण अथवा राजा द्वारा मंत्रपूर्वक स्थापित किया गया लिंग भी प्रतिष्ठित लिंग कहलाता है, किंतु वह 'प्राकृत लिंग' है। शक्तिशाली और नित्य होने वाला 'पौरुष लिंग' तथा दुर्बल और अनित्य होने वाला 'प्राकृत लिंग' कहलाता है।


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