दिऊड़ी मंदिर आदिवासियों को हिंदू बनाने का प्रयोगशाला तो नहीं है?

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देवड़ी मंदिर का जो विवाद है, मैं एक आदिवासी होने के नाते जो मेरा नजरिया है वह एक सवाल है की दिऊड़ी मंदिर आदिवासियों को हिंदू बनाने का प्रयोगशाला तो नहीं है? इस समझ के पीछे का पहला कारण तो यह है के आदिवासी प्रकृति की उपासना करते हैं। और उनके जो भी आस्था के केंद्र होते हैं वे सभी प्राकृतिक हैं, सिर्फ अपने पूर्वजों को वे लोग अपने आदिंग या आदिंग कोचा में पूजा उपासना करते हैं। सिद्धांतत: यदि देवड़ी मंदिर है, तब तो यह आदिवासियों का कैसे होगा? यदि दिवड़ी दिरी है, तो मंदिर शब्द कैसे जुड़ा? चूँकि आदिवासियों का तो मंदिर नहीं होता। झारखंड में आदिवासियों का जो पवित्र स्थल है, उन्हें सरना स्थल, जयरा स्थल, देशाउली आदि नामों से जानते हैं। मेरी समझ यह कहती है की दिउड़ी मंदिर के बहाने आदिवासियों को भी मंदिर में पूजा करने वाला बताने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि आरएसएस का जो दावा है कि आदिवासी हिंदू है उसे साबित किया जा सके। अभी जो विवाद है वह मंदिर के मालिकाना हक का विवाद के रूप में आगे बढ़ रहा है। इस विवाद से आरएसएस जैसे हिंदूवादी संगठनों को दोनों तरफ से फायदा है। वैचारिक रूप से यदि आदिवासियों के पक्ष में यह मंदिर जायेगा तो आरएसएस वाले कहेंगे कि देखो आदिवासी भी मंदिर में पूजा करते हैं। दूसरा सरना सनातन भाई भाई का जो उनका नारा है उसे भी यहाँ साबित करने की कोशिश की जा रही है, की कैसे हिंदू और आदिवासी एक ही जगह॰॰एक ही मंदिर में पूजा उपासना करते हैं।
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