पराशर झील देखने क्यों आते हैं लोग ||पराशर मन्दिर क्यों प्रसिद्ध है?

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#पराशर झील देखने क्यों आते हैं लोग#पराशर मन्दिर क्यों प्रसिद्ध है?
हिमाचल प्रदेश के जिला मण्डी के उत्तरशाल क्षेत्र में समुद्र तल से 9 हजार फुट ऊंची चोटी पर एक स्वच्छ नीली झील है l  झील के एक किनारे पर स्थित है ऋषि पराशर का तिमंजिला पगोडा शैली में बना पुरातन मन्दिर l
ऋषि पराशर कौन थे l ऋषि पराशर यहां कब आए और उन्होंने झील का निर्माण कैसे किया l
ऋषि पराशर के बारे में वेदों में उल्लेख मिलता है कि
ये शक्ति ऋषि के पुत्र हैं, महाभारत के रचयिता वेद व्यास के पिता और शुकदेव मुनि के दादा हैंl इनके दादा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र विशिष्ट ऋषि हैं l कुल्लू मण्डी के लोग इन्हें देउ पडासर के नाम से पुकारते हैं l
जहाँ ऋषि पराशर का मन्दिर है और उनके द्वारा बनाई गई झील है, प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज यह जगह सौराधार के नाम से जानी जाती है l वैसे तो यहां पहुँचने के लिए  कई रास्ते हैं , लेकिन प्रमुख मार्ग मण्डी से 40 किलोमिटर की दूरी पर कटौला बागी होकर है l दूसरा मार्ग कुल्लू से  नाउ जवालापुर होकर लगभग 45 किलोमिटर है l इन दोनों रास्तों से वाहन से यहां पहुँच सकते हैं l
झील और मंदिर के चारों ओर लगभग दो किलोमिटर घेरे में पर्वत एसा घेरा धारण किए हुए है,  जैसे कोई दीवार बांधी गई होl  इसी पर्वत रूपी दीवार के मध्य नीचे समतल स्थान पर झील और झील के तट पर पराशर ऋषि का मन्दिर है l झील के बीच लगभग 300 मीटर घेरे का तैरता भूखंड एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करता है l  यह भूखण्ड कभी मन्दिर के दक्षिणी हिस्से में होता है और कभी उत्तरी भाग में l  हालांकि इस झील का मुख्य आकर्षण यही भूखण्ड है l इसके घूमने का रहस्य अब तक कोई नहीं जान पाया l
यहां झील कैसे बनी? इस बारे में लोक श्रुति है कि एक बार ऋषि पराशर हिमालय में घूमते हुए इस स्थान पर आए l उन्हें यह स्थान पसंद आया l  अतः वे यहीं रहने लगे, लेकिन यहां पर पानी नहीं था l  तब ऋषि ने इसी स्थान पर भूमि पर लोहे की छड़  जिसे गुर्ज कह्ते हैं मारा l इससे जल निकला जिससे यह झील बन गई l झील बहुत गहरी हैl  कहा जाता है कि एक बार मण्डी के किसी शासक ने झील की गहराई नापनी चाही, इसके आसपास के गांवों से सैंकड़ों  रस्सियाँ इकट्ठा की गई l उन्हें आपस में बांधा गया l रस्सी के अगले सिरे पर लोहे का घन बाँधा गया l फिर उसे झील में डाला गया l सभी रस्सियाँ खत्म हो गयी लेकिन घन  तले तक नहीं पहुँच सका l  मजबूर होकर शासक को झील की गहराई मापने का विचार छोड़ना पड़ा l
यह मंदिर किसने और कब बनाया? हिस्ट्री ऑफ पंजाब हिल स्टेट में इसका वर्णन हुआ है कि इस मन्दिर का निर्माण तेहरवीं शताब्दी में तत्कालीन मण्डी राजा बाण सेन ने करवाया था l कहा जाता है कि मण्डी के राजा बाण सेन ने जब केलटी और सगुर के राणा को हराकर उत्तर शाल के क्षेत्र पर अपना राज स्थापित किया तो उसने ऋषि पराशर का मन्दिर बनवाया था l
मन्दिर देवदार के एक ही पेड़ से बनाया गया है l  इसे बनाने में बारह वर्ष का समय लगा था l इसी तरह का पगोडा शैली का मन्दिर कुल्लू जिला के कमांद गांव के संधान वन में भी है l यहां इसे तपी पराशर कहते हैं l जबकि सौरा धार में प्रत्यछि पराशर कहते हैं l
यहां पर आषाढ़ मास की सक्रांति को सौरा नाहुली मेला मनाया जाता है I जिसमें आसपास के गांवों के  देवता भाग लेते हैं l भादों मास की शुक्ल पक्ष की ऋषि पंचमी को ऋषि के जन्मदिन के रूप में पाण्जु उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है l बैसाख में काशी मेला भी मनाया जाता है I इन सब मेलों में सबसे अधिक लोग सौरा नाहुली में आते हैं l प्रकृत्ति की सुन्दरता के साथ-साथ यह स्थान अध्यात्म का भी पुण्य स्थल है l l
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