भर्तृहरि कृत नीति शतक भाग २ Bhartrihari Krit Neeti Shatak Part - 2

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नीति शतक
द्वितीय दशक का सारांश
विद्वत पद्धति

श्लोक ११ प्रतिभावान विद्वानों का समादर न हो तो प्रभु का ही दोष है , प्रतिभावान का नहीं ।
“ १२ प्रभुजन प्रतिभावन विद्वान से स्पर्धा न करें ।
“ १३ ज्ञानी विद्वानों को धन द्वारा वस में नहीं ला सकते ।
“ १४ प्रभुजन अप्रसन्न होकर प्रतिभावान की प्राकृतिक प्रतिभा को हर नहीं सकते ।
“ १५ कलंक – रहित विद्या ही सबसे सुंदर आभूषण है ।
“ १६ ज्ञानी विद्वान का आदर – सत्कार सभी जगह होता है ।
“ १७ विद्या राज्याधिकार से बड़ी वस्तु है ।
“ १८ संसार में सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति ही सफल हो सकता है ।
“ १९ सत्संग से सभी सुगुण सुलभ हो जाते हैं ।
“ २० विद्या ज्ञान अनश्वर है ।

भर्तृहरि कृत नीति शतक भाग ३
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