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Скачать или смотреть सीआरपीसी की धारा 482 : जानिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) का अर्थ

  • Indian Law
  • 2024-04-04
  • 146
सीआरपीसी की धारा 482 : जानिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) का अर्थ
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Описание к видео सीआरपीसी की धारा 482 : जानिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) का अर्थ

Hello Everyone,
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) के अंतर्गत धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय को अंतर्निहित शक्ति (Inherent Power) प्रदान की गई है। इस धारा के अधीन उच्च न्यायालय को एक विशेष शक्ति दी गई है। यह शक्ति दिए जाने का उद्देश्य न्यायालय की कार्यवाही को दुरुपयोग से बचाना है तथा न्याय के उद्देश्यों को बनाए रखना है।

कोई भी संहिता, अधिनियम, नियम, अपने आप में पूर्ण नहीं होते हैं क्योंकि समय, परिस्थितियां, क्षेत्र, काल के अनुरूप सब कुछ बदलता रहता है तथा अधिनियम नियमों एवं सहिंता को बनाने वाली विधायिका में इतनी दूरदर्शिता नहीं रहती है कि वह किसी संहिता को परिपूर्ण तथा अंतिम कर दे। भविष्य में उत्पन्न होने वाली सभी संभावित समस्याओं की पूर्व कल्पना करना संभव ही नहीं होता है क्योंकि भविष्य के गर्भ में देख पाना असंभव सा है।

इस समस्या से निपटने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अंतर्गत हाईकोर्ट को अंतर्निहित शक्ति प्रदान की जाती है, ताकि वह न्यायिक कार्यवाहियों के दौरान समय-समय पर उत्पन्न होने वाली ऐसी कठिनाइयों का निवारण कर सकें जिनके बारे में विधि के उपबंध मौन हो। इसका अर्थ यह है कि न्यायालय द्वारा अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब उसके समक्ष उत्पन्न किसी विधिक प्रश्न के निवारण के संदर्भ में उपबंध न हो। किसी समस्या के निवारण हेतु विधिक उपबंध विद्यमान होने की दशा न्यायालय द्वारा अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाएगा।

इस लेख में हम कुछ महत्वपूर्ण प्रकरणों की रौशनी में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में धारा 482 पर और चर्चा करेंगे। ललित मोहन मंडल बनाम ध्यानेन्द्र नाथ चटर्जी एआईआर 1982 सुप्रीम कोर्ट 785 के प्रकरण में कहा गया है कि कुछ असाधारण परिस्थितियों में हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किया जा सकता है एवं अंतर्निहित शक्ति के प्रयोग के प्रश्न पर न्यायालय को अपने विधिक विवेक का प्रयोग करना चाहिए।

समय-समय पर जो प्रकरण आए हैं, उन्हें देखने के उपरांत यह प्रतीत होता है कि उच्च न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के अधीन अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग मुख्यतः कुछ तीन प्रकार की परिस्थितियों में करता है-

1)- सहिंता की धारा 154 के अंतर्गत दर्ज की जाने वाली प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को अभिखण्डित (Quash) करने हेतु।

2)- सहिंता की धारा 173 के अधीन न्यायालय के समक्ष अभियोजन द्वारा पेश किए जाने वाले अंतिम प्रतिवेदन को निरस्त करने हेतु।

3)- किसी आपराधिक प्रकरण के पक्षकारों में आपसी राजीनामा हो जाने के उपरांत भी चलाई जा रही किसी दंडित कार्यवाही को निरस्त करने हेतु।

4)- आरोप- पत्र में किसी अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय नहीं किए जाने के उपरांत भी उस पर चलाए जा रहे आयुक्तियुक्त विचारण (Trial) की कार्यवाही को निरस्त करने हेतु।


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