"ॐ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा" – श्रीकृष्ण के दिव्य परिपूर्ण स्वरूप को समर्पित महासिद्ध मंत्र
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🔱 श्रीकृष्ण के परिपूर्णतम रूप का स्तवन | A Mantra of Total Surrender to the Supreme, Complete Form of Shri Krishna
मंत्र: "ॐ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा"
यह दिव्य मंत्र भगवान श्रीकृष्ण के उस परब्रह्म स्वरूप की स्तुति है जिसे "पूर्णावतार", "लीलापुरुषोत्तम", और "साक्षात् नारायण" कहा गया है। इस मंत्र के उच्चारण से साधक न केवल भक्ति की ऊँचाइयों को छूता है, बल्कि वह ब्रह्म के उस परिपूर्ण और सर्वसमावेशी स्वरूप से एकात्म हो जाता है।
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🌺 मंत्र का अर्थ | Meaning of the Mantra
ॐ – ब्रह्मांड का मूल नाद, सृष्टि का आदि स्रोत।
श्रीं – लक्ष्मी का बीज मंत्र; ऐश्वर्य, करुणा, सौंदर्य, और कल्याण का प्रतीक।
नमः – समर्पण, नमन, आत्मनिवेदन।
श्रीकृष्णाय – उस दिव्य पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण को जो साक्षात परब्रह्म हैं।
परिपूर्णतमाय – जो सर्वथा पूर्ण हैं; जिनमें समस्त गुण, शक्तियाँ और तत्त्व समाहित हैं।
स्वाहा – अग्नि में आहुति स्वरूप अर्पण, आत्मसमर्पण की चरम अवस्था।
➡ यह मंत्र हमें उस पूर्ण भगवान की शरण में ले जाता है जो केवल लीला पुरुष नहीं, बल्कि योगेश्वर, नीति के अधिपति, और भक्तों के हृदयाधिपति हैं।
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🌟 श्रीकृष्ण का 'परिपूर्णतम' स्वरूप क्या है?
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ही साक्षात परब्रह्म हैं – “कृष्णस्तु भगवान् स्वयं।”
वे सोलह कलाओं से पूर्ण हैं, अर्थात परिपूर्णतम हैं।
उनका यह रूप केवल वैकुंठ के नारायण से भिन्न नहीं, बल्कि उससे भी श्रेष्ठ है क्योंकि वे न केवल नियंता हैं, बल्कि प्रेम और लीला के स्रोत भी हैं।
उनका परिपूर्णतम स्वरूप बाललीलाओं में, मुरली की धुन में, गीता के उपदेशों में, और रास में अभिव्यक्त होता है।
वे ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, मोक्ष, सभी के अधिष्ठाता हैं।
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✨ इस मंत्र के लाभ | Benefits of Chanting This Divine Mantra
✅ भगवान श्रीकृष्ण के पूर्ण और निराकार से साकार स्वरूप से जुड़ने की शक्ति।
✅ भक्ति में गहराई, प्रेम में शुद्धता और मन में स्थिरता की प्राप्ति।
✅ हृदय, मन और आत्मा में करुणा, माधुर्य, और ईश्वरत्व की अनुभूति।
✅ जीवन की सभी बाधाओं का नाश और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति।
✅ मन को समर्पण की ओर ले जाना – "त्वमेव माता च पिता त्वमेव..." जैसी भावना का जागरण।
✅ यह मंत्र वैराग्य को नहीं, बल्कि रसपूर्ण भक्ति को प्रदान करता है – जिससे प्रेम में ही मोक्ष प्राप्त होता है।
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📿 जाप विधि | How to Chant This Mantra
1. प्रातःकाल स्नान कर, एक शांत स्थान में बैठें।
2. श्रीकृष्ण के चित्र, विग्रह या बालरूप के समक्ष दीपक और धूप जलाएँ।
3. तुलसी की माला या रुद्राक्ष माला से इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
4. मंत्र का उच्चारण भावपूर्ण, श्रद्धा से और शांत स्वर में करें।
5. विशेष रूप से जन्माष्टमी, एकादशी, और प्रतिदिन रात्रि ध्यान के समय इस मंत्र का जाप प्रभावकारी है।
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📖 पौराणिक प्रमाण | Scriptural Relevance
यह मंत्र गोपनीय उपासना से संबंधित है, जो भक्त को श्रीकृष्ण के उस अद्वितीय स्वरूप तक ले जाता है जो “सत्यं शिवं सुंदरं” है।
गीता में भगवान स्वयं कहते हैं – "भक्तोऽसि मे सखा चेति", और यह मंत्र उसी भाव से ईश्वर से एकत्व करता है।
भागवत धर्म में इसे "पूर्ण ब्रह्म" की उपासना का मन्त्र माना गया है।
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"जब कोई साधक ‘ॐ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा’ मंत्र का भावपूर्वक जाप करता है, तब वह अपने अहंकार, शंका और माया को विसर्जित कर, परिपूर्ण ब्रह्म श्रीकृष्ण के दिव्य प्रेम में विलीन हो जाता है।"
जय श्री कृष्ण! राधे राधे!
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