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Скачать или смотреть 1880 की रामलीला का चमत्कार – लोहे का शिवधनुष टूट गया!

  • Prabhu Ram Jee
  • 2025-09-11
  • 39
1880 की रामलीला का चमत्कार – लोहे का शिवधनुष टूट गया!
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"क्या आपने कभी ऐसी रामलीला की कथा सुनी है, जहाँ मंच पर घटित घटना को देखकर हजारों दर्शक स्तब्ध रह गए हों…?
जहाँ लोहे का शिवधनुष प्रभु की कृपा से टूट गया हो…?
आज हम आपको ले चलेंगे 1880 के बनारस के पास तुलसी गांव की उस रामलीला में… जहाँ पंडित कृपाराम दूबे और एक 17 वर्षीय कलाकार की आस्था ने असंभव को संभव कर दिया।"
________________________________________
*"साल था 1880… अक्टूबर-नवंबर का समय…
बनारस की एक प्रसिद्ध रामलीला मंडली तुलसी गांव आई थी।
22-24 कलाकार गाँव के ही एक व्यक्ति के घर पर रुके थे।
दिन में रिहर्सल, रात में हंसी-ठिठोली और भोजन…
और शाम होते ही पूरी मंडली रामलीला के रंग में डूब जाती थी।
इस मंडली का संचालन करते थे पंडित कृपाराम दूबे।
हारमोनियम पर बैठकर वे रामचरितमानस का पाठ और मंच संचालन करते।
साज-सज्जा और व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते थे फौजदार शर्मा।"*
________________________________________
*"एक दिन रिहर्सल के दौरान पंडित जी ने कहा —
‘इस बार शिव धनुष नरम लकड़ी का बनवाना चाहिए, ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 वर्षीय कलाकार को धनुष तोड़ने में कठिनाई न हो।’
ये सुनकर फौजदार शर्मा नाराज़ हो गए।
क्योंकि पिछली बार का धनुष भी उन्होंने ही बनवाया था।
बात बढ़ी और दोनों में कहा-सुनी हो गई।
फौजदार के मन में पंडित जी के लिए नाराज़गी बैठ गई।
उन्होंने मन ही मन ठान लिया — ‘देखता हूँ इस बार लीला कैसे चलती है।’"*
________________________________________
*"रामलीला का शुभारंभ हुआ…
हजारों दर्शक शिवधनुष भंग की लीला देखने आए।
पंडाल में सन्नाटा था, सभी की नज़रें मंच पर टिकी थीं।
पंडित कृपाराम दूबे हारमोनियम पर बैठे थे,
रामचरितमानस की चौपाइयाँ गा रहे थे,
उनका स्वर भक्ति और भाव से भरा हुआ था।
रामायण की कथा धीरे-धीरे आगे बढ़ी…
राजाओं ने क्रमशः शिवधनुष उठाने की कोशिश की…
सब असफल रहे।
अंत में बारी आई रामचंद्र जी की।
गुरु की आज्ञा लेकर 17 वर्षीय युवक मंच पर आया…
लेकिन जब उसने धनुष को उठाने की कोशिश की —
वह तनिक भी नहीं हिला।"*
________________________________________
*"उस क्षण कलाकार घबरा गया।
उसने पंडित कृपाराम दूबे की ओर देखा…
पंडित जी समझ गए — कुछ गड़बड़ है।
आज हजारों दर्शकों के सामने लीला बिगड़ सकती है…
और यह केवल कलाकार की नहीं, बल्कि स्वयं प्रभु श्रीराम की मर्यादा का प्रश्न है।
पंडित जी ने कलाकार को आँखों से संकेत किया —
‘प्रदक्षिणा करो… अभी समय है।’
और फिर उन्होंने अपनी आँखें बंद कर दीं।
दोनों हाथ हारमोनियम पर रखकर
पूर्ण भक्ति भाव से प्रभु राम का स्मरण करने लगे।"*
________________________________________
*"दर्शकों ने बताया — उस क्षण मानो चमत्कार घटित हुआ।
पंडित जी की उंगलियों से हारमोनियम पर ऐसे सुर निकले,
जैसे स्वर्ग से कोई दिव्य ध्वनि उतर आई हो।
नगाड़ों की सामान्य आवाज़ भीषण दुंदुभी में बदल गई।
पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी अचानक तेज़ हो गई।
आसमान में बिना बादलों के बिजली चमकने लगी।
पूरा पंडाल अद्भुत प्रकाश से भर गया।
दर्शक स्तब्ध थे।
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।
और तभी… पंडित जी ने चौपाई गाई —
“लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें।
काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।
भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥”
जैसे ही चौपाई पूरी हुई…
आकाश में भीषण बिजली कड़की…
और मंच पर रखा लोहे का शिवधनुष
दो भागों में टूट गया।"*
________________________________________
*"लोगों ने कहा — यह सब इतनी तेजी से हुआ कि किसी ने देखा भी नहीं,
कैसे और कब धनुष टूटा।
अगले ही पल सब सामान्य हो गया।
पंडित कृपाराम दूबे मंच पर गए…
टूटे हुए धनुष और राम का पात्र निभा रहे कलाकार के सामने दंडवत हो गए।
पूरा पंडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा।
पंडित जी की आँखों से आँसू बह रहे थे।
वह आँसू श्रद्धा और आत्मसमर्पण के थे।"*
________________________________________
*"यह घटना केवल एक रामलीला का प्रसंग नहीं थी…
यह प्रमाण थी कि जब मन निर्मल हो,
भक्ति सच्ची हो,
तो स्वयं ईश्वर मंच पर उतर आते हैं।
पंडित कृपाराम दूबे ने उस दिन सिद्ध कर दिया —
प्रभु श्रीराम सबके हैं।
बस एक बार पूरे मन से उनका हो जाइए,
वे स्वयं आपके हो जाते हैं।"*
________________________________________
"अगर आपको यह अद्भुत कथा पसंद आई हो,
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और ऐसे ही भक्ति और आस्था से जुड़े प्रसंग सुनने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें।
जय श्रीराम 🙏"

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