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Скачать или смотреть inherent powers of High Court.मान. उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां क्या है, धारा 482 सीआरपीसी

  • Parameter of law
  • 2022-06-08
  • 184
inherent powers of High Court.मान. उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां क्या है, धारा 482 सीआरपीसी
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Описание к видео inherent powers of High Court.मान. उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां क्या है, धारा 482 सीआरपीसी

In this video, I am explaining about saving of inherent powers of High Court.
nothing in this court shall be deemed to limit for affect the inherent powers of the High Court to make such orders as may be necessary to give effect to any order under this code, or to prevent abuse of the process of any Court or otherwise to secure the ends of Justice.
इस वीडियो में माननीय उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों की वयावृत्ति के संबंध में बताया जा रहा है।
इस संहिता की कोई बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति को सीमित या प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी ,जैसे इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए या किसी न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग निवारण करने के लिए या किसी अन्य प्रकार से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत अंतर्गत शक्तियां यद्यपि विस्तृत है ,किंतु किंतु इसका प्रयोग दुर्लभ रूप से सावधानी और बहुत सजगता से किया जाना चाहिए ,तथा यह केवल तभी करना चाहिए जब स्वयं इस धारा में प्रतिपादित विशेष कसोटी द्वारा यह करना न्यायोचित हो।
न्यायालय का प्राधिकार न्याय की वृद्धि के लिए है, यदि आदेशिका का दुरुपयोग अन्याय की ओर ले जाता है ,और यह न्यायालय की सूचना के लिए लाई जाती है ,तो अधिनियम में विशिष्ट उपबंधो के अभाव में अंतर भूत शक्तियों का आह्वान कर के अन्याय रोकने के लिए न्यायालय उचित पूर्ण निर्णय ले सकता है। इंदर मोहन गोस्वामी विरुद्ध उत्तरांचल राज्य ए आई आर 2008 सुप्रीम कोर्ट 251.
उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का अर्थ है ऐसा पावर जो कोई देता नहीं है बल्कि न्याय हित को देखते हुए विवान लो जाकर न्याय के उद्देश्यों को सिक्योर करने हेतु अंतर्निहित शक्ति का माननीय उच्च न्यायालय प्रयोग कर सकती है जो आर्बिट्रेरी नहीं होगा और शक्ति का दुरुपयोग नहीं होगा।
माननीय उच्च न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत याचिका पर विचार कर f.i.r. रद्द करने पर विचार कर सकती है बल्कि 4 सीट भेज कर दी गई है।
नारायण मल्हारी थोड़ा विरुद्ध विनायक देव राव भगत के मामले में यह कहा गया कि हाईकोर्ट अनुसंधान के पहले मेंस रिया अर्थात गलती इंटेंशन के संबंध में कोई विचार या जांच नहीं कर सकती।
मोहम्मद अलाउद्दीन खान विरुद्ध बिहार राज्य के मामले में शिकायतकर्ता हुआ अभियुक्त के बीच अर्थात सेम पार्टीज के बीच यदि सिविल और क्रिमिनल मामले चल रहे हैं तो दोबारा उन्हीं आधारों पर केस नहीं लाया जा सकता या व्यवस्था सीपीसी की धारा 11 तथा धारा 300 सीआरपीसी में प्रावधान जहां पर पक्षकारों के तथ्य एवं पक्षकार समान हो तो उन्हीं आधारों पर दोबारा मामला नहीं लगाया जा सकता।
दिनेश भाई चंदू भाई विगत गुजरात राज्य के मामले में यह कहा गया कि हाईकोर्ट अपीली अदालत की तरह तथ्यात्मक सामग्री को देखेगा जांच एजेंसी की तरह हाईकोर्ट कार्य नहीं कर सकता और ना ही अपीली अदालत की तरह कार्य कर सकता है।
जितेन सिंह विरुद्ध स्टेट ऑफ बिहार के मामले में यह कहा गया कि धारा 482 सीआरपीसी में माननीय उच्च न्यायालय को यह जांच करना चाहिए कि परिवार को पढ़ने भर से किसी अपराध के गठन का निर्माण होता है कि नहीं दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत यह जानना आवश्यक है कि आपराधिक तत्व सामग्री मामले में अपराध के लिए बनती है कि नहीं तभी हाई कोर्ट आपराधिक शक्ति का अंतर्निहित शक्तियों के तहत प्रयोग कर सकती है।
अतुल शुक्ला विरुद्ध स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश के मामले में यह कहा गया कि माननीय उच्च न्यायालय टू सिक्योरिटी एंड ऑफ जस्टिस के लिए गाइडलाइंस का ध्यान रखते हुए इन्हेरेंट पावर्स का यूज कर सकती है इसमें न्याय हित का ध्यान रखा जाना अत्यंत आवश्यक होता है।
#माननीय उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां क्या होती है
#inherent powers of the high court under section 482 CRPC.
#parameter of law

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