लखनऊ का सबसे क़दीमी इमाम बाड़ा आगा़ बाक़र ख़ां | Oldest Imambara of Lucknow Imambara Agha Baqar Khan |

Описание к видео लखनऊ का सबसे क़दीमी इमाम बाड़ा आगा़ बाक़र ख़ां | Oldest Imambara of Lucknow Imambara Agha Baqar Khan |

Channel- Sunil Batta Films
Documentary- Oldest Imambara of Lucknow Imambara Agha Baqar
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,

Synopsis-
इमामबाड़ा आगा बाक़र ख़ाँ
लखनऊ में जितने भी इमाम बाड़ा हैं उन में आज भी बड़ी अकी़दत और एहतिराम से महफिलें और मजलिसें मुनअक़िद की जाती है। इन इमामबाड़ों में फन्ने तामीर और उन में मौजूद दिलकश उभरे हुए पुरकशिश नुक़ूश आलमगीर मक़बूलियत के हामिल हैं।
इमाम बाड़ा आग़ा बाक़र खां की तामीर, आगा़बाक़र ख़ां की काविशो का नतीजा है जो पूरे हिन्दुस्तान में शाहाने अवध और लखनऊ की अज़मत का ज़ामिन है। जहां आज भी अक़ीदत मंदों और ज़ायरीन का मजमा लगा रहता है। इन इमाम बाड़ों में यह इमाम बाड़ा लखनऊ का सबसे क़दीमी इमाम बाड़ा है। कहा जाता है कि शहरे लखनऊ में सबसे पहला इमाम बाड़ा आग़ा अबू ताबिल ख़ां ने बनवाया था जो हुसैन गंज के पीछे बाग़ आइना बीबी में वाके़ था जिस का अब नामो निशान भी बाकी नहीं रहा । इमामबाड़ा आगा बाक़र ख़ाँ लखनऊ की सरज़मीन पर दूसरा इमाम बाड़ा है।
इमाम बाड़ा आगा़ बाक़र ख़ां को आग़ा इसमाईल दिलवार जंग की ख़्वाहिश पर उनके चाचा और कारपरदाज़ आग़ा बाकर ख़ां ने बअहदे शुजाउद्दौला मुसाफिर ख़ाना के क़रीब बनवाया था। यानी ज़मानये क़दीम में इमाम बाड़े के क़रीब बनवाया था। यानी ज़मानये क़दीम में इमाम बाड़े के क़रीब एक मुसाफिर खाना भी मौजूद था जो अब बाक़ी नहीं रहा। यह लखनऊ का दूसरा इमाम बाड़ा है यहां लखनऊ की चूड़ी वालियां आबाद थीं। उनके मकानात मुनतक़िल करवाकर यह वसी इमाम बाड़ा तामीर हुआ था। इमाम बाड़ा हुसैनाबाद इसी के नक़शे पर मुहम्मद अली शाह ने बनवाया था। आग़ा बाक़र 5 हज़ार सवारों के रिसालदार थे। आगा इसमाईल कालपी के हाकिम हो कर जब रवाना हुए और मरहटों से मुक़ाबिला करते रहे यहां तक कि शहीद हो गये, फिर आग़ाबाक़र इस मनसब के हामिल हो कर रवाना हुए। उन्होंने वहां भी इमाबाड़ा बाड़ा बनवाया। इमामबाड़ा आग़ा बाक़र ख़ां में ईरानी तर्ज़ पर मजलिसे होती थीं इमाम बाड़ा 1857 ईस्वी की कोरिश तक बाक़ी था।
मौजूदा जदीद तामीर काम का आग़ाज 1971 ईस्वी से हुआ और यह सिलसिला अब तक जारी है। और अब तो यह इमाम बाड़ा निहायत ही ख़ूबसूरत नज़र आता है और लोगों की निगाहो का मरकज़ बनता है।
इमाम बाड़े की ज़ीनत ज़रीह के एलावा एक खास वज़ा का अलम है उस तरह का दूसरा अलम दुनिया में शायद ही मिल सके। यह अलम 1859 में ज़मीन की खुदाई के दौरान मिला था, इस अलम को जनाब अब्बास का नाम दिया गया है, इस अलम के दायीं हाथ में तलवार है और बायीं हाथ में अलम मौजूद है। इस इमाम बाड़े के अंदर कई और भी क़ीमती और मुबारक चीज़े मौजूद हैं, उसमें अली असग़र के नाम का एक छोटा झूला मौजूद है। हज़रत इमाम हुसैन की भी ज़रीह मौजूद है, इस में एक ज़रीह लकड़ी की बनी हुई भी मौजूद है। जनाब जैनब के नाम की भी एक ज़रीह मौजूद है और जनाब उम्मुलबनीन हज़रत अब्बास की वालिदा की ज़रीह भी मौजूद है।
इस इमाम बाड़े की ख़ासियत यह रही है कि यहां पर दौरे क़दीम ही से मजालिस में शहर के मशहूरो मारूफ लोग शामिल होते थे जिनमें राजा महमूदाबाद की अहलिया ख़ास तौर पर का़बिले ज़िक्र हैं। आज भी इस इमाम बाड़े की मजालिस में शहर की मुम्ताज़ शख़सियतें हिस्सा लेती हैं।



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