लगातार बने रहने का भाव बस एक मानसिक धारणा है

Описание к видео लगातार बने रहने का भाव बस एक मानसिक धारणा है

हम सोचते हैं कि समय के जिस बिंदु में हमारा जन्म हुआ है वहां से हम शुरू होते हैं और फिर लगातार बने रहते हैं, मरने के बाद भी कुछ न कुछ हमारा शेष रह ही जाता है। ‘मैं’ समझता है कि वह लगातार बना ही हुआ है, उसकी स्मृतियां उसके अनुभव, जो उसने समय के चलते इकट्ठे करे होते हैं वह उसे यकीन दिलाते हैं कि वह लगातार है ही। जहां भौतिक जगत में सब कुछ पल-पल बदल ही रहा है, जिसमें हमारा शरीर और मन भी शामिल है, तो वह कौन सी चीज है जो इस निरंतर होते हुए बदलाव के बीच में भी लगातार बनी रहती है? अगर हम थोड़ा गौर से देखेंगे तो हमें समझ आएगा कि यह जो लगातार होने का भाव है यह हमारी एक बहुत गहरी मान्यता है। हमारी स्मृतियां हमें धोखे में डाल देती हैं कि हम निरंतर हैं। इस ‘मैं’ का लगातार होना ही फिर इसकी थकान का कारण बनता है। जितने विस्तृत समय के मैदान में यह फैला होता है उतना ही ज्यादा इस पर बोझ होता है - जिसके चलते इसमें कोई ताजगी, कोई नयापन, नहीं होता। जीवन जीने के लिए जो एक लचीलापन अनिवार्य है वह हम इस ‘मैं’ में नदारत पाते हैं। ‘मैं’ का फिर होना ही उसका बोझ है। हमारे खत्म होने में ही हमारी भलाई है क्योंकि अगर हम इस पल-पल बदलते हुए जगत और जीवन की नई धारा के साथ बदल और मिट नहीं रहे हैं तो हम एक कृत्रिम, खुद की ही बनाई हुई दुनिया में जी रहे हैं जिसका वास्तविकता से कोई रिश्ता नहीं है और जीवन से फिर यही दूरी हमारे हर दुख का मूल कारण है।

Chapters

00:00 Intro
00:14 हमारी लगातार बने रहने की चाह
05:25 हमारा या किसी भौतिक चीज़ का लगातार बने रहना एक वहम है
09:55 हम मिटने से घबराते हैं
14:36 हम चाहते हैं कि हम एक छाप छोड़कर जाएं
18:27 'मैं' का लगातार होना ही उसका बोझ है, उसकी थकान का कारण है
25:32 लगातार सब कुछ मिट रहा है, हम खुद मिट रहे हैं
32:05 हम समय की रेखा में आगे नहीं बढ़ रहे, गोल-गोल घूम रहे हैं
37:23 जो मृत्यु से घबराता है वो जीवन में भी डर कर रहता है

Комментарии

Информация по комментариям в разработке