मूली की खेती में फंगस नियंत्रण के लिए बीज उपचार, प्रतिरोधी किस्मों का चयन, खेत मेंअच्छी जल निकासी, संतुलित सिंचाई, सही खाद का उपयोग, फसल चक्र अपनाना, और फफूंदनाशकों (जैसे डाइथेन एम-45) के छिड़काव का उपयोग किया जाता है. मिट्टी में सुधार के लिए खेत की तैयारी के दौरान नीम की खली और गोबर खाद मिलाना भी फायदेमंद होता है.
फंगस नियंत्रण के उपाय:
बीज उपचार:
बुवाई से पहले बाविस्टीन या कैप्टान जैसे फफूंदनाशकों से बीज को उपचारित करें.
किस्मों का चयन:
फंगस प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें.
मिट्टी और सिंचाई प्रबंधन:
खेत की मिट्टी में अच्छी धूप लगवाएं.
बीज को ठंडी और नम मिट्टी में न बोएं.
खेत में पानी जमा न होने दें और उचित जल निकासी की व्यवस्था करें.
सिंचाई करते समय मिट्टी को समान रूप से नम रखें, ड्रिप सिंचाई विधि अपनाई जा सकती है.
जैविक और रासायनिक नियंत्रण:
खेत की जुताई के समय नीम की खली और गोबर खाद का प्रयोग करें.
फसल में संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक का प्रयोग करें.
प्रभावित पौधों को खेत से हटाकर नष्ट कर दें.
डाइथेन एम-45 या रिडोमिल जैसे फफूंदनाशकों का छिड़काव .Cultivating Radish vegetable helps to earn upto 1.5 lakh ...मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु और जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, जहाँ पीएच मान 6.5 के आसपास हो। बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करके अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। बरसात में जलभराव से बचने के लिए मेड बनाकर बुवाई करें, जिसमें बीज से बीज की दूरी 3-5 सेमी और मेड से मेड की दूरी 15 इंच हो। बुवाई के लिए पूसा चेतकी, जापानी व्हाइट, पूसा हिमानी जैसी किस्मों का चुनाव कर सकते हैं।
जलवायु और मिट्टी
जलवायु:
मूली की फसल के लिए ठंडी जलवायु अच्छी होती है, जिसमें 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त होता है। अधिक तापमान से जड़ें कड़वी और सख्त हो सकती हैं।
मिट्टी:
जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 के आसपास होना चाहिए।
खेत की तैयारी
खेत की कई बार हल से जुताई करें और पाटा फेरकर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बना लें।
प्रति एकड़ 5-10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिलाएं। अच्छी तरह से न गली हुई गोबर की खाद डालने से बचें।
किस्में
पूसा चेतकी, जापानी व्हाइट, पूसा हिमानी, पूसा रश्मी, पूसा देसी और अर्का निशांत लोकप्रिय किस्में हैं।
बुवाई का समय और विधि
बुवाई का समय:
पहाड़ी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी और मैदानी क्षेत्रों में अगस्त में बुवाई की जाती है।
बरसात में:
जुलाई के पहले सप्ताह में मेड बनाकर बुवाई करना सबसे अच्छा होता है।
बुवाई विधि:
मेड पर बुवाई करने से जलभराव की समस्या नहीं होती। मेड से मेड की दूरी 15 इंच और बीज से बीज की दूरी 3 इंच रखें।
सिंचाई
शुरुआत में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन जब कंद का विकास हो रहा हो, तब सिंचाई जरूरी होती है।
ड्रिप सिंचाई या सामान्य क्यारी विधि से सिंचाई की जा सकती है।
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Key Uses and Benefits
Disease Control: Effectively targets oomycete fungi, preventing diseases like late blight and downy mildew.
Crop Protection: Protects a variety of crops including potatoes, grapes, tomatoes, citrus, tobacco, and vegetables.
Dual Action: Combines systemic and contact action for comprehensive disease prevention.
Metalaxyl: A systemic fungicide absorbed by the plant, moving within tissues for long-lasting, internal protection.
Mancozeb: A contact fungicide that forms a protective barrier on the plant's surface.
Improved Harvest: Promotes healthier plants, leading to increased yields and higher quality harvests.
Application Flexibility: Can be applied as a foliar spray, soil treatment, or seed treatment.
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