अहोई अष्टमी व्रत के फायदे और पूजन विधि | संतान के लिए इसका महत्व || Ahoi Ashtami 31st October 2018

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अहोई अष्टमी व्रत के फायदे और पूजन विधि, संतान के लिए इसका महत्व, Ahoi Ashtami 12th October 2017, अहोई अष्टमी 2017, Ahoi Ashtami Vrat and Pooja Vidhi : अहोई अष्टमी का व्रत सन्तान की उन्नति, प्रगति और दीर्घायु के लिए होता है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। जिस दिन (वार) की दीपावली होती है, उससे ठीक एक सप्ताह पूर्व उसी दिन (वार) को अहोई अष्टमी पड़ती है।
व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन उपवास रखना चाहिए। सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएं। पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाएं। चाहें तो बना-बनाया चार्ट बाजार से खरीद सकती हैं।
सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा प्रारम्भ करने से पूर्व जमीन को साफ करें। फिर चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर एक पटरे पर कलश की तरह रखकर पूजा करें।
पूजा के लिए माताएं पहले से चांदी का एक अहोई या स्याऊ और चांदी के दो मोती बनवाकर डोरी में डलवा लें। फिर रोली, चावल व दूध-भात से अहोई का पूजन करें। जल से भरे लोटे पर स्वास्तिक बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्यनुसार रुपए का बायना निकालकर रख लें और हाथ में सात दाने गेहूं लेकर कथा सुनें। कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें और जो बायना निकाला था, उसे सासूजी का चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें।
इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें। दीपावली के पश्चात् किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगाएं और जल के छींटे देकर आदर सहित स्वच्छ स्थान पर रख दें। जितने बेटे अविवाहित हों, उतनी बार 1-1 तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार 2-2 चांदी के दाने अहोई में डालती जाएं। ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर बेटों की दीर्घायु करके घर में मंगल करती हैं। इस दिन ब्राम्हणों को पेठा दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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