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Скачать или смотреть महाभारत के महानायक भगवान् श्रीकृष्ण - Mahabharata's Great Hero Lord Shri Krishna : Dharmik Gyan

  • Dharmik Gyan
  • 2024-05-25
  • 2335
महाभारत के महानायक भगवान् श्रीकृष्ण - Mahabharata's Great Hero Lord Shri Krishna : Dharmik Gyan
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Описание к видео महाभारत के महानायक भगवान् श्रीकृष्ण - Mahabharata's Great Hero Lord Shri Krishna : Dharmik Gyan

महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष है| यह विविध कथा रूपी रत्नों का तथा अज्ञान के अन्धकार को विनष्ट करने वाला सूर्य है| इस ग्रन्थ के मुख्य विषय तथा इस महायुद्ध के महानायक भगवान् श्रीकृष्ण हैं| नि:शस्त्र होते हुए भी भगवान् श्रीकृष्ण ही महाभारत के प्रधान योद्धा हैं| इसलिये सम्पूर्ण महाभारत भगवान् वासुदेव के ही नाम, रूप, लीला और धाम का संकीर्तन है| नारायण के नाम से इस ग्रन्थ के मङ्गलाचरण में व्यास जी ने सवर्प्रथम भगवान् श्रीकृष्ण की ही वन्दना की है|

महाभारत के आदिपर्व में भगवान् श्रीकृष्ण का प्रथम दर्शन द्रौपदी-स्वयंवर के अवसरपर होता है| जब अर्जुन के लक्ष्यवेध करनेपर द्रौपदी उनके गले में जयमाला डालती है तब कौरवपक्ष के लोग तथा अन्य राजा मिलकर द्रौपदी को पाने के लिये युद्धकी योजना बनाते हैं| उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने उनको समझाते हुए कहा कि 'इन लोगों ने द्रौपदी को धर्मपूर्वक प्राप्त किया है, अत: आप लोगों को अकारण उत्तेजित नहीं होना चाहिये|' भगवान् श्री कृष्ण को धर्मका पक्ष लेते हुए देखकर सभी लोग शान्त हो गये और द्रौपदी के साथ पाण्डव सकुशल अपने निवासपर चले गये|

धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में जब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि यहाँ सर्वप्रथम किसकी पूजा की जाय तो उस समय महात्मा भीष्म ने कहा कि 'वासुदेव ही इस विश्व के उत्पत्ति एवं प्रलय स्वरूप हैं और इस चराचर जगत्का अस्तित्व उन्हीं से है| वासुदेव ही अव्यक्त प्रकृति, सनातन कर्ता और समस्त प्राणियों के अधीश्वर हैं, अतएव वे ही प्रथम पूजनीय हैं|' भीस्म के इस कथन पर चेदिराज शिशुपालने श्रीकृष्ण की प्रथम पूजाका विरोध करते हुए उनकी कठोर निन्दा की और भीष्म पितामह को भी खरी-खोटी सुनायी| भगवान् श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक उसकी कठोर बातोंको सहते रहे और जब वह सीमा पार करने लगा, तब उन्होंने सुदर्शन चक्र के द्वारा उसका सिर धड़से अलग कर दिया| सबके देखते-देखते शिशुपाल के शरीर से एक दिव्य तेज निकला और भगवान् श्रीकृष्ण में समा गया| इस अलौकिक घटनासे यह सिद्ध होता है कि कोई कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, भगवान्के हाथों मरकर वह सायुज्य मुक्ति प्राप्त करता है|

पाण्डवों के एकमात्र रक्षक तो भगवान् श्रीकृष्ण ही थे, उन्हीं की कृपा और युक्ति से ही भीमसेन के द्वारा जरासन्ध मारा गया और युधिष्ठिर का राजसूययज्ञ सम्पन्न हुआ| राजसूययज्ञ का दिव्य सभागार भी मयदानवने भगवान् श्रीकृष्ण के आदेश से ही बनाया| द्यूत में पराजित हुए पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी जब भरी सभामें दु:शासन के द्वारा नग्न की जा रही थी, तब उसकी करुण पुकार सुनकर उस वनमालीने वस्त्रावतार धारण किया| शाकका एक पत्ता खाकर भक्तभयहारी भगवान् ने दुर्वासाके कोपसे पाण्डवोंकी रक्षा की|

युद्ध को रोकने के लिये श्रीकृष्ण शान्ति दूत बने, किंतु दुर्योधन के अहंकार के कारण युद्धारम्भ हुआ और राजसूययज्ञ के अग्रपूज्य भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बने| संग्रामभूमिमें उन्होंने अर्जुन के माध्यम से विश्र्व को गीतारूपी दुलर्भ रत्न प्रदान किया| भीष्म, द्रोण, कर्ण और अश्र्वत्थामा - जैसे महारथियोंके दिव्यास्त्रोंसे उन्होंने पाण्डवोंकी रक्षा की| युद्धका अन्त हुआ और युधिष्ठिरका धर्मराज्य स्थापित हुआ| पाण्डवोंका एकमात्र वशंधर उत्तराका पुत्र परीक्षित् अश्र्वत्थामाके ब्रह्मास्त्रके प्रभावसे मृत उत्पन्न हुआ, किंतु भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से ही उसे जीवनदान मिला| अन्तमें गान्धारी के शापको स्वीकार करके महाभारतके महानायक भगवान् श्रीकृष्णने उद्दण्ड यादवकुलके परस्पर गृहयुद्धमें संहारके साथ अपनी मानवी लीलाका संवरण किया|


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