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Скачать или смотреть जानिए हसली या दुमागी ब्राह्मण जातियों का इतिहास।।। गढ़वाल की जातियों का इतिहास।।।

  • Mankhi ki kalam se
  • 2025-09-10
  • 144
जानिए हसली या दुमागी ब्राह्मण जातियों का इतिहास।।। गढ़वाल की जातियों का इतिहास।।।
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Описание к видео जानिए हसली या दुमागी ब्राह्मण जातियों का इतिहास।।। गढ़वाल की जातियों का इतिहास।।।

दुमागी या हसली ब्राह्मण

नागपुर में रुद्रप्रयाग से केदारनाथ क्षेत्र में फैले ब्राह्मणों को एटकिंसन व चातीराम ने 'निरोला' रतूड़ी ने 'नानागोत्री' तथा राहुल ने ऐतिहासिक व सर्वप्रचलित नाम 'दुमागी' ब्राह्मण लिखा है। सन् 1884 में एटकिंसन लिखते हैं कि "निरोला सामाजिक रूप में सरोलों की तुलना में कमतर माने जाते हैं और इनका एक अलग वर्ग है जिसे 'दुभागी' 'कहते कहते हैं। हैं। ये न तो सरोले के हाथ का और न ही गंगाड़ी ब्राह्मणों के हाथ का भोजन (दाल-चावल) करते हैं। ये सरोला व गंगाड़ी दोनों से शादी-ब्याह नहीं करते। ये लोग रुद्रप्रयाग से केदारनाथ के रास्ते में नागपुर परगने में हैं। इनके कई गोत्र हैं जैसे कश्यप व अंगिरा और इसलिए इन्हें 'नानागोत्री' कहा जाता है। इनकी प्रमुख उप जातियाँ घुसाली, जमलोगी, किमोठी, मैकोटा, दरम्वाड़ा, भटग्वांल, कणधारी, बड़म्वाल, सिल्वाल, पोल्दी, बिल्वाल, गरसारा, थल्वाल, गुगलेटा, द्योल्खी, कंड्याल. थलासी, फलाटा, गड्याल, धमक्वाल, सन्वाल, मणग्वाल, बमोला, बिंजाल और गुनाई हैं। इनमें से अधिकांश किसी न किसी गाँव के नाम पर हैं। ये आपस में शादी-ब्याह करते हैं। ये कृषि का कार्य भी कर रहे हैं।"।

एटकिंसन के अनुसार इनका एक वर्ग है तथा इन्हें 'दुभागी' कहते हैं। संभवतः एटकिंसन द्वारा अपने कार्य हेतु प्रश्न सूची इस क्षेत्र के पटवारी या अन्य किसी को भेजी गई हो तथा हिंदी में लिखा दुमागी शब्द दुभागी पढ़ गए हों। इसीलिए इन्हें दुमागी की जगह दुभागी लिखा गया। ऐतिहासिक ग्रंथ 'रामायण प्रदीप' (1750-80) में भी इस क्षेत्र को 'दुर्मार्गदेश' लिखा गया है। एटकिंसन इन ब्राह्मणों को 'निरोला' क्यों लिखते हैं, कहीं भी स्पष्ट नहीं किया है। आगे नानागोत्री (मात्र दो गोत्रों-कश्यप व अंगिरा का उदाहरण देकर) का अर्थ कई गोत्रों वाले लगाते हैं। जबकि इन ब्राह्मणों में किसी का भी गोत्र अंगिरा नहीं है। अधिकांश कश्यप व भारद्वाज गोत्र के हैं। इन ब्राह्मणों के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द 'दुमागी' का अर्थ दूर मार्ग पर रहने वाले ब्राह्मणों से है। 'दो मार्गों' (शैव केदारनाथ व वैष्णव बदरीनाथ) के निवासियों के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है। इन दोनों तीर्थों का प्राचीन मार्ग यही था कंडारा गढ़ी से प्राप्त कार्तिकेयपुर नरेश ललितशूर के ताम्रपत्राभिलेख जो नौक सदी के आसपास का है, की दसवीं पंक्ति में इस क्षेत्र को 'दुर्मोर्ग' लिख गया है। आज भी कंडारा गढ़ी से उत्तरी भाग को दुमाग तथा उस क्षेत्र निवासियों को दुमागी कहा जाता है।

साभार:रमाकांत बेंजवाल #गढ़वाली भाषा की शब्द सम्पदा

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