मुंडकोपनिषद्|ब्रह्म विद्या का रहस्य|Mundakopanishad|mundakopanishad.

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मुंडकोपनिषद् दो-दो खंडों के तीन मुंडकों में, अथर्ववेद के मंत्रभाग के अंतर्गत आता है। इसमें पदार्थ और ब्रह्म-विद्या का विवेचन है, आत्मा-परमात्मा की तुलना और समता का भी वर्णन है।
इसके मंत्र सत्यमेव जयते ना अनृतम का प्रथम भाग, यानि सत्ममेव जयते भारत के राष्ट्रचिह्न का भाग है। इसमें परमात्मा द्वारा अपने अन्दर से विश्व के निर्माण (मकड़ी के जाले का उदाहरण) और दो पक्षिय़ों द्वारा जगत के साथ व्यवहार को आत्मा-परमात्मा में भेद के उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया गया है। यह अद्वैत वैदांतियों, जैसे शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद और द्वैत वादियों जैसे माध्वाचार्य दोनों की रूचि का ग्रंथ है। शंकराचार्य को यह अद्वैत वेदांत तथा संन्यास निष्ठा का प्रतिपादक है।

इस उपनिषत् में ऋषि अंगिरा के शिष्य शौनक और ऋषि के संवाद के रूप में दिखाया गया है। इसमें 64 मंत्र है - 21, 21 और 22 के तीन मुंडकों में।

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