Kartik Swami Temple || भगवान शिव के बड़े बेटे का भव्य मंदिर ||

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Kartik Swami Temple || भगवान शिव के बड़े बेटे का भव्य मंदिर || #uttrakhand #chardham

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग पर कनक चौरी गांव के पास 3050 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।। कार्तिक स्वामी मंदिर भगवान शिव के बड़े पुत्र, कार्तिकेय को समर्पित है, जिन्होंने अपने पिता के प्रति समर्पण के प्रमाण के रूप में अपनी हड्डियों की पेशकश की थी। माना जा रहा है कि घटना यहीं हुई है। भगवान कार्तिक स्वामी को भारत के दक्षिणी भाग में कार्तिक मुरुगन स्वामी के रूप में भी जाना जाता है।

दक्षिण भारत में कार्तिकेय का आगमन---------------
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प्राचीन ग्रंथो के अनुसार एक बार ऋषि नारद मुनि एक फल लेकर कैलाश गए दोनों गणेश और कार्तिकेय मे फल को लेकर प्रतियोगिता (पृथ्वी के तीन चक्कर लगाने) आयोजित की गयी जिस के अनुसार विजेता को फल मिलेगा । जहां मुरूगन ने अपने वाहन मयूर से यात्रा शुरू की वहीं गणेश जी ने अपने माँ और पिता के चक्कर लगाकर आशीर्वाद प्राप्त कर फल प्राप्त किया जिस पर मुरूगन निवृत्ति प्राप्त कर सगुण अवतार रूप मे कैलाश से दक्षिण भारत की ओर चले गए।देव दानव युद्ध में देवो के सेनापति के रूप में। दक्षिण भारत में युवा और बाल्य रूप में पुजा जाता है। रामायण, महाभारत, तमिल संगम में वर्णन।


STORY-------------------------------------------------------------------------------------

गणेश जी प्रथम पूज्य हैं और इससे संबंधित एक कथा है। शास्त्रों के मुताबिक, एक दिन गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी के बीच प्रतियोगिता हुई कि कौन सबसे पहले संसार का चक्कर लगाकर लौटता है। कार्तिकेय स्वामी का वाहन मयूर यानी मोर है और गणेश जी का वाहन चूहा है, जो कि मोर की अपेक्षा बहुत धीरे चलता है।

कार्तिकेय तो अपने वाहन मयूर पर बैठकर उड़ गए, लेकिन गणेश जी का वाहन चूहा है तो उन्होंने विचार किया कि अगर मैं चूहे पर बैठकर संसार की परिक्रमा करूंगा तो बहुत समय लग जाएगा, कार्तिकेय ये प्रतियोगिता जीत जाएंगे। उन्होंने कुछ सोचा और फिर शिव-पार्वती की परिक्रमा करनी शुरू कर दी। गणेश जी ने कहा कि मेरा संसार को मेरे माता-पिता ही हैं।

गणेश जी की बुद्धिमानी से शिव जी इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने अपने पुत्र गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान दे दिया। हालांकि इस बात कार्तिकेय स्वामी गणेश जी के साथ ही शिव-पार्वती से भी नाराज हो गए थे। नाराज होकर कार्तिकेय स्वामी क्रौंच पर्वत पर रहने चले गए। ये पर्वत वर्तमान में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जहां है, वहां स्थित है।

गणेश जी को प्रथम पूज्य बन गए, लेकिन नाराज कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव-पार्वती ने बहुत कोशिशें कीं। जब कार्तिकेय स्वामी की नाराजगी दूर नहीं हुई, तब शिव-पार्वती ने तय किया कि अब से वे हर अमावस्या और पूर्णिमा पर बारी-बारी से कार्तिकेय से मिलने पहुंचेंगे। मान्यता है कि इसी कथा की वजह से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में शिव-पार्वती ज्योति स्वरूप में विराजित रहते हैं।
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