*जन्माष्टमी और मुस्लिम कवियों की कृष्ण भक्ति*
जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है। यह त्योहार मुख्य रूप से हिंदू धर्म से संबंधित है, लेकिन इसके प्रेम, धर्म और भक्ति के संदेश ने सभी समुदायों को प्रेरित किया है। कई मुस्लिम कवियों ने भी भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है, जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक एकता का प्रमाण है।
#### *मोहम्मद इक़बाल और उनकी कृष्ण के प्रति श्रद्धा*
अल्लामा मोहम्मद इक़बाल, भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध मुस्लिम कवियों और दार्शनिकों में से एक, अपने गहरे विचारों और धार्मिक सीमाओं से परे देखने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। इक़बाल ने अपने एक प्रसिद्ध शेर में भगवान कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की है:
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ہے رام کے وجود پہ ہندوستاں کو ناز
اہل نظر سمجھتے ہیں اس کو امام ہند
```
**अनुवाद**:
"राम के अस्तित्व पर हिंदुस्तान को गर्व है,
ज्ञानी लोग उन्हें भारत का नेता मानते हैं।"
हालांकि इस शेर में भगवान राम का उल्लेख है, यह इक़बाल की व्यापक श्रद्धा को दर्शाता है जो वह सभी धार्मिक व्यक्तित्वों, विशेष रूप से भगवान कृष्ण के प्रति रखते थे। उनके लिए ये सभी धार्मिक व्यक्तित्व भारतीय सभ्यता की नैतिक और आध्यात्मिक नींव के प्रतीक थे।
#### *रसखान की कृष्ण भक्ति*
रसखान, जिनका असली नाम सैय्यद इब्राहिम था, एक सूफी संत और महान कृष्ण भक्त थे। उनकी कविताओं में भगवान कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम की झलक मिलती है। रसखान का एक प्रसिद्ध दोहा है:
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मानुस हों तो वही रसखान,
बसों मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पशु हों तो कहा बस मेरो,
चरो नित नंद की धेनु मँझारन।
```
**अनुवाद**:
"अगर मैं मनुष्य बनूं, तो वही रसखान बनूं,
जो गोकुल गाँव की ग्वालिनों के संग रहूं।
और अगर मैं पशु बनूं, तो नंद बाबा की गायों के बीच चरूं।"
इस दोहे में रसखान ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को अत्यंत सरल और खूबसूरत तरीके से व्यक्त किया है। उनके लिए कृष्ण के साथ रहने का विचार ही उनके जीवन का सर्वोच्च सुख था।
#### *अब्दुल रहीम खान-ए-खाना की श्रद्धा*
रहीम, जिन्हें अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से जाना जाता है, अकबर के दरबार के एक महान विद्वान और कवि थे। उन्होंने भी अपनी कविताओं में भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त किया:
```
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥
```
**अनुवाद**:
"जिसकी प्रकृति उत्तम है, वह बुरी संगति का क्या करेगा?
चंदन पर विष का असर नहीं होता, भले ही साँप लिपट कर बैठा हो।"
रहीम का यह शेर कृष्ण के चरित्र की महानता को दर्शाता है, जो किसी भी बुरी संगति से प्रभावित नहीं हो सकते, जैसे चंदन पर विषधर का असर नहीं होता।
#### *सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव*
इन कवियों के शेर और दोहे हमें यह सिखाते हैं कि भक्ति और श्रद्धा की कोई सीमाएं नहीं होतीं। भगवान कृष्ण का प्रेम और उनकी लीलाएं सभी को समान रूप से प्रभावित करती हैं, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय का हो। रसखान और रहीम जैसे मुस्लिम कवियों ने कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को जिस गहराई और भावनात्मक समर्पण के साथ व्यक्त किया है, वह हमारे समाज की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक सद्भाव का जीता-जागता प्रमाण है।
#### *निष्कर्ष*
जन्माष्टमी का पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रेम, करुणा और धर्म के उन सार्वभौमिक मूल्यों का उत्सव है जो हर इंसान के दिल में बसे हुए हैं। यह त्योहार हमें उन साझा मूल्यों की याद दिलाता है जो हमें एकजुट करते हैं और हमें मानवता के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराते हैं। अल्लामा इक़बाल, रसखान और रहीम जैसे महान मुस्लिम कवियों की कविताएं इस बात का प्रमाण हैं कि भगवान कृष्ण का प्रभाव और उनके प्रति प्रेम धार्मिक सीमाओं से परे है, और यह भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को और भी अधिक उजागर करता है।
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