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Скачать или смотреть Chamunda mata mandir Haldeshwar mahadev mandir chamunda village

  • Rathore Captain Channel
  • 2023-05-28
  • 2558
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Описание к видео Chamunda mata mandir Haldeshwar mahadev mandir chamunda village

माता चामुंडा का इतिहास
सूर्यवंश से ताल्लुक रखने वाले इंदा वंश की कुलदेवी के रूप में चामुंडा माता पूजी जाती है
पडियार वंशजों का चामुंडा देवी के साथ संबंध पर सर्वप्रथम स्टिक उल्लेख पडियार खाखूराजा से मिलता है पडियार खाखू चामुंडा माता की पूजा अर्चना करने चामुंडा गांव आते थे जो कि जोधपुर से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी
पाटन नगरी जहां का राजा परिहार खाखू राज करते थे जो चामुंडा गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी चामुंडा माता का मंदिर चावंडागांव की ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है जिसका मुख जोधपुर की ओर है इस मंदिर में प्रतिष्ठापित चामुंडा माता की प्रतिमा स्वत प्रकट है इस प्रतिमा के ऊपर छत्र सुशोभित है चट्टान में से प्रकट हुई मंदिर के अग्रभाग में यज्ञ कुंड बना हुआ है

मंदिर परिसर का परिक्रमा स्थल अद्भुत है यहां के पुजारी चावंडिया राजपुरोहित है ऐसा माना जाता है कि माता चामुंडा राजा खाखू के शरीर से रूबरू होती थी एक बार खाखू जी अपनी नगरी पाटन में विशाल यज्ञ करने के लिए देवी के दर्शन के लिए चावंडा गांव पहुंचे वहां पहुंचने पर उन्होंने माता चामुंडा को यज्ञ में आने के लिए प्रार्थना की और माता ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया

इसके बाद यज्ञ के दिन माता चामुंडा के देर से पहुंचने पर खाखू जी ने अभिमान स्वरूप उनसे पूछा कि तुम इतनी देर से क्यों आई हो,तब माता चामुंडा ने उनसे कहा कि मैं आते समय निषाद भगत के घर पर रुक गई थी जिसके कारण मुझे आने में देरी हो गई थी इतना सुनने पर खाखू जी बहुत ही क्रोधित हुए और वह अपनी म्यान से तलवार निकालकर माता की ओर दौड़ेतभी माता चामुंडा ने राजा की नगरी को जमींदोज होने का अभिशाप दे दिया इसके बाद माता चामुंडा आगे आकर एक खेजड़ी के नीचे बैठ गई और अपने लटिया खोल कर बैठ गई

जब मां को विकराल रूप में देखा तो राजा ने माफी मांगीजहां माता चामुंडा ने विश्राम किया वह स्थान आज के समय में चामुंडा ढाणियों में मां लटियाल का स्थान है और वहां पूजी जाती है वहां से मां पहाड़ी पर ध्यान लगाने आ गई पीछे-पीछे राजा खाखू जी भी आ गया और बोला मां मैं मेरी तलवार अब बगैर वार किए म्यान में नहीं डाल सकता और उसने जग में आने की प्रार्थना की उसका मान बढ़ाया
तब माता चामुंडा ने उससे कहा मेरे पीठ पीछे मार दे इसके बाद राजा ने वार मां चामुंडा के पीछे पहाड़ी पर मारा जिससे वह दो भागों में बंट गई दो भागों में विभक्त होने से इसका भी ऐतिहासिक महत्व इस रूप में बढ़ गया कि मंदिर के बाहर परिक्रमा करने हेतु फिरनी तैयार हो गई जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामहा राव चुंडा का संबंध भी चामुंडा देवी से रहा है

जोधपुर राज्य की स्थापना से पहले राव चुंडा के पिता जोहीयों से लड़ते हुए काम आए, इस पर अपनी माता कुलदेवी की इच्छा अनुसार गुप्त रूप से कलाऊ गांव में आल्हा जी चारण के पास 7 साल रहे कुछ समय पश्चात है आला चारण ने इन्हें रावल मल्लिनाथ के पास पहुंचा दिया वहां राव चुंडा ने रावल मल्लिनाथ के प्रधान का मन जीत लिया
जब मल्लिनाथ को पता चला कि यह मेरा ही खून है तब तक तो वहां से राव चुंडा बाड़ी की जंगलों में आकर रहने लगे और चामुंडा की पूजा करने लगे यहां रहते हुए चामुंडा के मंदिर में देवी के दर्शन करने चुंडा आता रहता था वह भी देवी का परम भक्त था उसी समय तारो जी सिया की कन्या ‘लांचाबाई’ सिहादा गांव से रोजाना पूजा करने आती थी और देवी मां से रूबरू बातचीत करती थी

जंगल में एक अकेली कन्या को पहाड़ी पर आता जाता देख कर एक दिन राव चुंडा ने पूछ लिया कि आप रोजाना इतनी दूर से आती हो क्या कभी देवी ने दर्शन भी दिया है तब लांचाबाई ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं हर रोज माता चामुंडा से बातचीत करती हूं चामुंडा | माता चामुंडा का इतिहास |

चामुंडा माता का मंदिर
मेहरानगढ़ किले के अंत में स्थित चामुंडा माता मंदिर जोधपुर के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है देवी को जोधपुर के निवासियों का मुख्य देवता माना जाता है और इन्हें राज परिवार की सबसे बड़ी देवी भी माना जाता है यह मंदिर पर्यटकों को बहुत ही आकर्षित करता है

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