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Скачать или смотреть सनातन" का अर्थ है – शाश्वत, अनादि और अनंत.

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  • 2025-09-02
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सनातन" का अर्थ है – शाश्वत, अनादि और अनंत.
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Описание к видео सनातन" का अर्थ है – शाश्वत, अनादि और अनंत.

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सनातन धर्म : एक विस्तृत विवेचन

प्रस्तावना

भारत की सभ्यता और संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन और महान सभ्यताओं में से एक है। इसी सभ्यता की जड़ में एक ऐसा धार्मिक और दार्शनिक तंत्र विकसित हुआ जिसे सनातन धर्म कहा जाता है। “सनातन” शब्द का अर्थ है – नित्य, शाश्वत, अनादि और अनंत, और “धर्म” का अर्थ है – वह व्यवस्था या नियम जो जीवन को संतुलित, नैतिक और उच्च आदर्शों की ओर ले जाए। इस प्रकार सनातन धर्म का अर्थ है – ऐसा धर्म जो नित्य और शाश्वत है, जिसका आरंभ और अंत नहीं है और जो सृष्टि के प्रत्येक प्राणी के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

सनातन धर्म को ही आगे चलकर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाने लगा, किंतु वास्तव में सनातन धर्म एक सार्वभौमिक जीवन-पद्धति है, जो किसी जाति, पंथ, काल या भूगोल से बंधी नहीं है।


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सनातन धर्म का अर्थ

‘सनातन’ – शाश्वत, अनादि, अविनाशी।

‘धर्म’ – धारण करने योग्य, जीवन का सत्य, कर्तव्य, नैतिकता, आचार-विचार और नियम।


इस प्रकार सनातन धर्म वह व्यवस्था है जो सृष्टि के मूल नियमों पर आधारित है और जो प्रत्येक युग, देश और काल में प्रासंगिक रहता है।


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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1. वैदिक युग –
2. सनातन धर्म की सबसे प्राचीन झलक हमें ऋग्वेद (लगभग 1500–2000 ई.पू.) में मिलती है। इसमें देवताओं की स्तुति, यज्ञ की परंपरा, जीवन के मूल्य और प्रकृति की उपासना का उल्लेख मिलता है।

2. उपनिषद काल –
3. यहाँ धर्म के दार्शनिक पक्ष पर गहन चर्चा हुई। आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म और मोक्ष की अवधारणाएँ विकसित हुईं।

3. महाकाव्य काल –
4. रामायण और महाभारत में धर्म को जीवन का व्यावहारिक मार्गदर्शन माना गया। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म को कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग से जोड़कर समझाया।

4. उत्तरवैदिक और शास्त्रीय काल –
5. मनुस्मृति, धर्मशास्त्र, पुराणों और आचारग्रंथों में धर्म के सामाजिक और नैतिक स्वरूप का विस्तार हुआ।



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सनातन धर्म के मुख्य सिद्धांत

1. सत्य – सत्य को परम धर्म कहा गया है। उपनिषद कहते हैं – सत्यमेव जयते।

2. अहिंसा – किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचाना।

3. करुणा और दया – जीव मात्र के प्रति सहानुभूति।

4. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – मानव जीवन के चार पुरुषार्थ।

5. कर्म का सिद्धांत – जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा।

6. पुनर्जन्म – आत्मा शाश्वत है, शरीर बदलता है।

7. मोक्ष – जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है।

8. सर्वधर्म संभाव – सब धर्मों का सम्मान, सभी मार्ग परमात्मा तक ले जाते हैं।



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शास्त्रीय आधार

1. वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।

2. उपनिषद – आत्मा और ब्रह्म का गूढ़ ज्ञान।

3. पुराण – ईश्वर, अवतार, भक्ति और लोककथाएँ।

4. महाकाव्य – रामायण और महाभारत।

5. गीता – जीवन का व्यवहारिक और दार्शनिक मार्गदर्शन।



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आचार और परंपराएँ

संस्कार – जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कार।

पूजा-पद्धति – देवपूजन, यज्ञ, आरती, भजन।

त्योहार – दीपावली, होली, नवरात्रि, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी आदि।

आश्रम व्यवस्था – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।

वर्ण व्यवस्था – कर्म और गुण पर आधारित चार वर्णों की व्यवस्था।



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सनातन धर्म और दर्शन

भारतीय दर्शन की छह आस्तिक दर्शनों – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और वेदांत – की जड़ें सनातन धर्म में ही हैं। ये दर्शन मनुष्य को आत्मज्ञान, तर्क, विज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं।


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आधुनिक संदर्भ में सनातन धर्म

आज की बदलती दुनिया में भी सनातन धर्म प्रासंगिक है क्योंकि –

1. यह पर्यावरण की रक्षा और प्रकृति की पूजा सिखाता है।

2. यह विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश देता है।

3. यह विज्ञान और अध्यात्म का संतुलन स्थापित करता है।

4. यह मानसिक शांति और योग द्वारा स्वास्थ्य का मार्ग दिखाता है।



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वैश्विक प्रभाव

सनातन धर्म की शिक्षाओं ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है –

योग और ध्यान आज विश्वभर में अपनाए जा रहे हैं।

कर्म और पुनर्जन्म की अवधारणा ने पश्चिमी चिंतन को प्रभावित किया।

गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत ने विश्व राजनीति को नया रास्ता दिया।



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आलोचनाएँ और सुधार

समय-समय पर सनातन धर्म में कुछ कुरीतियाँ भी आईं – जातिगत भेदभाव, अंधविश्वास आदि। लेकिन संतों, सुधारकों और महापुरुषों – जैसे कबीर, तुलसीदास, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी – ने इसके मूल स्वरूप को पुनः जगाया।

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