माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान क्यों किया ?जानिए खास रहस्य
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पितृ पक्ष में श्राद्ध से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. शास्त्रों में कहा गया है कि अगर बेटों के जरिए श्राद्ध कर्म किया जाए तभी पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं
हमारे शास्त्रों में पिंडदान का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। लोग पितृपक्ष के दौरान पिंड दान करने गया जी में और हरिद्वार, ऋषिकेश, इलाहाबाद और प्रयाग जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मरे हुए व्यक्ति का पिंडदान करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है तो हमें भी अपने पूर्वजों का पिंडदान जरूर करना चाहिए।
वाल्मिकी रामायण के अनुसार सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का प्रसंग आता है। वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के वक़्त श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां ब्राह्मण द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गये।जब राम और लक्ष्मण को श्राद्ध कर्म की सामग्री लाने में देरी हुई तो ब्राह्मण देव ने माता सीता से आग्रह किया कि पिंडदान का समय निकलता जा रहा है। यह सुनकर सीता जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि श्रीराम और लक्ष्मण अभी नहीं लौटे थे, इसी उपरांत दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया कि, पिंड दान का वक़्त बीता जा रहा है, यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई, तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी। उन्होंने फाल्गू नदी के साथ साथ वहाँ उपस्थित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान किया, इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो, राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार किया, माता सीता को इस बात से प्रसन्नता हुई कि, उनकी पूजा राजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है, पर वह यह भी जानती थी कि, प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे, क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है।
थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा, तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया, प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि, बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है, तब सीता जी ने कहा कि वहाँ उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं।
भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं, यह पूछा, तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का, क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि, माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया। सिर्फ वटवृक्ष ने सत्य कहा कि, माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधिपूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया है। पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया।
फल्गुनदी सिर्फ नाम की नदी रहेगी, इसमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गुनदी आज भी गया में सूखी रहती है।
▪️सीताकुण्ड पर दिया जाता है बालू का पिण्डदान–फल्गुनदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।
▪️गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी।
▪️तुलसी को गया में न उगने का श्राप दिया।
▪️ब्राह्मण से कहा कि तुम कभी संतुष्ट नहीं हो पाओगे। वस्तुओं को और अधिक पाने की लालसा तुममें लगी रहेगी।
कौवे को कहा कि उसका अकेले खाने से उसका कभी पेट नहीं भरेगा और उसकी आकस्मिक मृत्यु होगी।
वहीं सच बोलने पर माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि, उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।और जो लोग भी पिंडदान करने के लिए गया आएंगे. उनकी पूजा अक्षय वट की पूजा करने के बाद ही सफल होगी.
यह वटवृक्ष गया में ‘अक्षयवट’ के नाम से जाना जाता है।
मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार है.
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