दर्द पक्का है, इसलिए मुस्कुराओ || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2024)

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वीडियो जानकारी: 12.06.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
~ छोटी-छोटी समस्या बहुत परेशान करे तो क्या करें?
~ उलझनों से कैसे बचे?
~ अपने दर्द से कैसे बात करें?

आपदः सम्पदः काले दैवादेवेति निश्चयी।
तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वाञ्छति न शोचति ।।
~ अष्टावक्र गीता, अध्याय 11, श्लोक 3

अन्वय: काले = समय में; आपदः = आपत्तियाँ; च = और; सम्पदः = सम्पत्तियाँ; दैवात् एव = देवयोग से ही होती है; इति निश्चय = ऐसा निश्चय करने वाला पुरुष; नित्यं तृप्तः स्वस्थेन्द्रियः = नित्य संतुष्ट व स्वस्थेन्द्रिय हुआ; न वाञ्छति = अप्राप्त वस्तु की इच्छा नहीं करता है; च = और; न = न; शोचति = नष्ट हुई वस्तु को शोचता है ।।

भावार्थ: समय में आपत्तियाँ और सम्पत्तियाँ दैव (प्रारब्ध) से होती हैं, ऐसा जो पुरुष निश्चय कर लेता है, वह सदा ही तृप्त रहता है। उसकी इन्द्रियाँ सदा ही स्वस्थ रहती हैं। न तो वह प्राप्ति की इच्छा करता है और न ही खोने पर शोक करता है।


संगीत: मिलिंद दाते
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