केले में फंगीसाइड का प्रयोग डॉक्टर सागर द्वारा

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केले की खेती

परिचय

किस्में

खाद एवं उर्वरक

कीट एवं रोग नियंत्रण

परिचय

हमारे देश के फलों में केले का प्रमुख स्थान है। इसकी खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ती जा रही है। केले का फल पौष्टिक होता है। इसमें शर्करा एवं खनिज लवण जैसे फास्फोरस तथा कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी खेती निम्न बातों को ध्यान में रखकर की जाये तो आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होगा।

भूमि

दोमट भूमि जिसका जल निकास अच्छा हो और भूमि का पी.एच. मान 6 से 7.5 के बीच हो।

गड्ढे की खुदाई

गड्ढे की लम्बाई, चौड़ाई एवं गहराई 60x 60x 60 सें.मी. ।

खुदाई का समय अप्रैल-मई

गड्ढे की भराई

गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी खाद (20-25 कि.ग्रा. या 2-3 टोकरी) तथा 100 ग्राम बी. एच. सी. प्रति गड्ढा, उपरोक्त पदार्थो को गड्ढे की ऊपर की मिट्टी में मिश्रित करके जमीन की सतह से लगभग 10 सें.मी. ऊँचाई तक भरकर सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे मिट्टी मिश्रण गड्ढे में अच्छी तरह बैठ जाए।

पौधों की दूरी एवं संख्या

पौधों एवं कतार की दूरी 1.5x 1.5 मीटर, 4400 पौधे प्रति हेक्टेयर

लगाने का समय

15 मई से 15 जुलाई

जून का महीना सबसे उपयुक्त है।

किस्में

केले की अनेक किस्में हैं जो इस क्षेत्र में उगायी जा सकती हैं, जैसे – ड्वार्फ कैवेंडिश, रोवस्टा, मालभोग, चिनिया, चम्पा, अल्पान, मुठिया/कुठिया तथा बत्तीसा। इन किस्मों के विषय में कुछ जानकारी नीचे दी जा रही है:

ड्वार्फ कैवेंडिश: यह सबसे प्रचलित एवं पैदावार देने वाली किस्म है। इस पर पनामा उक्ठा नामक रोग का प्रकोप नहीं होता है। इस प्रजाति के पौधे बौने होते हैं व औसतन एक घौंद (गहर) का वजन 22-25 कि.ग्रा. होता है जिसमें 160-170 फलियाँ आती हैं। एक फली का वजन 150-200 ग्रा. होता है। फल पकने पर पीला एवं स्वाद में उत्तम होता है। फल पकने के बाद जल्दी खराब होने लगता है।

रोवेस्टा: इस किस्म का पौधा लम्बाई में ड्वार्फ कैवेंडिश से ऊँचा होता है और इसकी घौंद या गहर का वजन अपेक्षाकृत अधिक और सुडौल होता है। यह किस्म प्रर्वचित्ती रोग से अधिक प्रभावित होती है। परन्तु पनामा उकठा के प्रति पूर्णतया प्रतिरोधी है।

मालभोग: यह जाति अपने लुभावने रंग, सुगंध एवं स्वाद के लिये लोगों को प्रिय हैं। लेकिन पनामा उक्ठा रोग के प्रकोप से फसल को हानि होती है। इनके पौधे बड़े होते हैं। फल का आकार मध्यम और उपज औसतन होती है।

चिनिया चम्पा: यह भी खाने योग्य स्वादिष्ट किस्म हिया जिसके पौधे बड़े किन्तु फल छोटे होते हैं। इस किस्म को परिवार्षिक फसल के रूप में उगाया जाता है।

अल्पान: यह वैशाली क्षेत्र में उगाये जाने वाली मुख्य किस्म है। इस जाति के पौधे बड़े होते हैं जिसपर लम्बी घौंद लगती है। फल एक आकार छोटा होता है। फल पकने पर पीले एवं स्वादिष्ट होते हैं जिसे कुछ समय के लिये बिना खराब हुए रखा जा सकता है।

मुठिया/कुठिया: यह सख्त किस्म है। इसकी उपज जल के अभाव में भी औसतन अच्छी होती है। फल मध्यम आकार के होते है जिनका उपयोग कच्ची अवस्था में सब्जी हेतु एवं पकने पर खाने के लिये किया जाता है। फल एक स्वाद साधारण होता है।

बत्तीसा: यह किस्म सब्जी के लिये काफी प्रचलित है जिसकी घौंद लम्बी होती है और एक गहर में 250-300 तक फलियाँ आती हैं।

पुत्तियों का चुनाव

2-3 माह पुरानी, तलवारनुमा पुत्तियाँ हों

टीसू कल्चर से प्रवर्धित पौधे रोपण के लिए सर्वोत्तम होते हैं क्योंकि इनमें फलत शीघ्र तथा समय पर होती है।

खाद एवं उर्वरक

300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फास्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष नाइट्रोजन को पाँच, फास्फोरस को दो तथा पोटाश को तीन भागों में बाँट कर देना चाहिए।

जिसका विवरण निम्नवत है –

पौध रोपण के समय : फास्फोरस 50 ग्राम

पौध रोपण के एक माह बाद : नाइट्रोजन 60 ग्राम

पौध रोपण के दो माह बाद : नाइट्रोजन (60 ग्राम) +फास्फोरस (50 ग्रा.) +पोटाश (100 ग्रा.)

पौध रोपण के तीन माह बाद : नाइट्रोजन (60 ग्रा.) + पोटाश (100 ग्रा.)

फूल आने के दो माह पहले : नाइट्रोजन 60 ग्राम

फूल आने के एक माह पहले : नाइट्रोजन (60 ग्रा.) + पोटाश (100 ग्रा.)

खाद एवं उर्वरक को पौधे के मुख्य तने से 10-15 सें.मी. की दूरी पर चारों तरफ गुड़ाई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए और पौधे की तुरन्त सिंचाई कर देनी चाहिए।

सिंचाई

सामान्यतया बरसात में (जुलाई-सितम्बर) सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। गर्मियों में (मार्च से जून तक) सिंचाई 5-6 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। सर्दियों में (अक्टूबर से फरवरी तक) 12-13 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

अवरोध परत (मल्चिंग)

पौधों के नीचे पुआल अथवा गन्ने की पत्ती की 8 सें.मी. मोटी परत अक्टूबर माह में बिछा देनी चाहिए। इससे सिंचाई की संख्या में 40 प्रतिशत की कमी हो जाती है, खर पतवार नहीं उगते तथा उपज एवं भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है।

पुत्ती निकलना

पौधे के बगल से निकलने वाली पुत्तियों को 20 सें.मी. तक वृद्धि करने के पहले ही भूमि की सतह से काट कर निकालते रहना चाहिए। मई-जून के महीन में एक पुत्ती हर पौधे के पास अगले वर्ष पेड़ी की फसल के लिए छोड़ देना चाहिए।

नर फूल से गुच्छे काटना

फल टिकाव हो जाने पर घार के अगले भाग पर लटकते नर फूल के गुच्छे को काट देना चाहिए।

सहारा देना

घार निकलते समय बांस/बल्ली की कैंची बनाकर पौधों को दो तरफ से सहारा देना चाहिए।

मिट्टी चढ़ाना

बरसात से पहले एक पंक्ति के सभी पौधों को दोनों तरफ से मिट्टी चढ़ाकर बांध देना चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण

पत्ती विटिल: यह कीट कोमल पत्तों तथा ताजे बने फलों के छिलके को खाता है। प्रकोप अप्रैल-मई

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