गोरखनाथ जी और कबीर परमेश्वर जी की गोष्ठी।

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गोरखनाथ जी और कबीर परमेश्वर जी की गोष्ठी।

रामानंद जी शिवजी के उपासक थे। गोरखनाथ जी भी शिव जी के उपासक थे। रामानंद जी ज्यादा प्रसिद्ध हो रहे थे। एसलिये नाथ जी ने गोष्ठी करने की ठान ली और उनसे गोष्टी करने के लिए आए।
रामानंद जी को पता चला कि एक सिद्ध आए हैं जो मुझसे ज्ञान चर्चा करेंगे तो रामानंद जी घबरा गए क्योंकि उन्हें पता था कि इन सिद्ध लोगों के पास सिद्धियां होती है लोगों को सिद्धियां दिखाएंगे और लोग ताली बजा देंगे। ज्ञान तो सुनेगा ही नहीं और लोगों की नजर में वह सर्वश्रेष्ठ बन जाएगा।

एक बार गोरखनाथ और कबीर परमेश्वर जी की चर्चा हुई।नाथो में सिद्धि आ जाती है।जो एक प्रकार का मोक्ष है कुछ सिद्धि ऐसे होती हैं जो पित्र लोक में रहते हैं और जब चाहे पृथ्वी पर अन्य रूप बनाकर आ जाते हैंl


कबीर साहिब जी ने भी नाम मात्र के लिए रामानंद जी को गुरु बनाया हुआ था ताकि कोई यह नहीं कहे कि कबीर जी का तो कोई गुरु ही नहीं था।

गोरखनाथ जी जब कभी साहिब जी से गोष्टी करने लगे तो अपने त्रिशूल के ऊपर जाकर बैठ गए और कबीर साहेब जी से कहा कि आप भी मेरे बराबर में आकर मुझसे बात कीजिए अगर चर्चा करनी है तो मेरे बराबर में आकर कीजिए नहीं तो हार मान लीजिए।
तब कबीर साहेब के जेब में एक को कुकडी (ताना बुनने के लिए धागा) थी। उन्होंने उस कुकडी को पूरा आसमान तक सीधा खड़ा कर दिया और उसके ऊपर के छोर पर जा कर बैठ गए।
गोरख नाथ जी देखते रह गए।
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