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Скачать или смотреть Maa Vindhyawasini (Bhagwati Durga) ki Shakti | Why we should do Nav Chandi and Yagya Havan?

  • Journeys with Maa
  • 2025-05-04
  • 2077
Maa Vindhyawasini (Bhagwati Durga) ki Shakti | Why we should do Nav Chandi and Yagya Havan?
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Описание к видео Maa Vindhyawasini (Bhagwati Durga) ki Shakti | Why we should do Nav Chandi and Yagya Havan?

This was a small satsang we had while performing our Nav Chandi Anushthan at Vindhyavasini Dham.
You’ll find references to these stories in various Puranas, and I’ll cover them in detail in future videos.

But here, I just want to highlight two simple yet powerful truths that appear again and again in our scriptures:

1. Whatever we do — whether it’s thinking, eating, working, or even breathing — it is all governed by the Shakti of Maa, the divine cosmic energy. This point has been solidify in Vedokt Devi Suktam as well. I literally gets goose bumps when I read - जो खाता है वो मेरी शक्ति से खाता है और इसी तरह जो सोचता है, कार्य करता है वो मेरी ही शक्ति से करता है...

2. When we perform puja, paath, yagya, havan, or any sacred act without personal desire or expectation (nishkam bhav), we are actually nourishing the deities themselves.
Yes — cosmic energies draw strength from our devotion, intention, and karmic acts.
Even a simple havan is literally an offering to strengthen divine forces through Ahutis.

What exactly is in an Ahuti?
Why do the Gods "feed" on it?
That’s something we’ll explore in a detailed future video.

महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- "विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्" (हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं।)। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है ।

श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्री कृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल चली गई। जहा अष्टभुजा मंदिर में विराजमान हैं।

श्रीमद्देवीभागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ। यह ब्रह्मांड का प्रथम दिव्य स्वयंभू तीर्थ है जो प्रलय के पश्चात भी काशी खंड की तरह नष्ट नहीं होता। यहां, दिन में एक बार सबके लिए निर्धारित समय अंदर से दर्शनं हो सकते हैं। माँ को पुष्प शृंगार प्रिय है। महाभारत के पूर्व भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को युद्ध में विजय का आशीर्वाद मांगने लेकर आए थे जहा युधिष्ठिर और अर्जुन ने स्व रचित स्तोत्र से उनकी स्तुति की थी जो अभी भी प्रचलित है।

शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी (नंद बाबा की पुत्री) कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं । इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है

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