भक्तों, जय माता दी, आप सबका तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तो, सनातन धर्म में ही स्त्री की पूजा का विधान है, मनु स्मृति में कहा है, जहाँ स्त्री की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं, यही नहीं सनातन धर्म में स्वयं भगवान भी स्त्री रूप में आये और अपनी शक्ति महामाया को यहाँ दुर्गा रूप में भेजा. सनातन धर्म के अलावा अन्य सभी जगह स्त्री को सिर्फ भोग्या समझा जाता है अर्थात भोग की वस्तु. परन्तु सनातन धर्म में पुरुष और स्त्री में भेद-भावना नहीं की गयीं. यही कारण है की यहाँ छोटी सी कन्या को देवी समझकर उसकी पूजा की जाती है, भक्तों, इसी भावना के आधार पर आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन करवाने जा रहे हैं. जिसका आधार कई सौ वर्ष पूर्व एक अनोखी घटना घटने पर एक विवाहिता स्त्री दुर्गा अचानक गायब हो गयी और उसके कारण निर्माण हुआ आज के दर्शनीय मंदिर ""दुर्गा देवी मंदिर"" का।
मंदिर के बारे में:
भक्तो उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल ज़िले के कोटद्वार शहर में दुगड्डा नामक स्थान पर स्थित है प्राचीन और लोकप्रिय मंदिर दुर्गा देवी मंदिर. ये मंदिर एक 12 फुट लम्बी गुफा के अंदर स्थित है. मन्दिर में प्रवेश के लिए गुफा में लेटकर जाना पड़ता है, ये मंदिर प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है. भक्तो मंदिर कोटद्वार शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर है और समुद्र तल से मंदिर की ऊंचाई लगभग 600 मीटर है। दुर्गा माता का यह मंदिर चारों ओर से हरे भरे जंगलो, पहाड़ों एवं नदी से घिरा होने के कारण यहाँ प्रक्रति का अद्भुद सौन्दर्य देखने को मिलता है.
मंदिर का इतिहास:
भक्तों, कोटद्वार उत्तराखंड में स्थित दुर्गा देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है. कहा जाता है की चरक संहिता में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, भक्तो मंदिर से जुड़ी एक लोक कथा के अनुसार कहा जाता है की कई सौ वर्ष पूर्व घाड़ क्षेत्र से कोई बारात इस मार्ग से गुज़र रही थी, तो पैदल चलकर थके हुए बारातियों ने इस स्थान पर कुछ देर विश्राम किया, भक्तो जब विश्राम के बाद दुल्हन को देखा गया तो दुल्हन गायब थी, दुल्हन का नाम दुर्गा था. बारातियों ने सब स्थानों पर दुर्गा को ढूंढा पर वो नहीं मिली, चारों ओर घना जंगल होने के कारन यहाँ से कहीं और जाने का कोई मार्ग भी नहीं था, अचानक सबके सामने दुर्गा के गायब होने के पीछे बारात में उपस्थित बड़े बुजुर्गों का एकमत था की वो दुल्हन दुर्गा माँ का ही स्वरूप थी, इसलिए उन् सब लोगो ने यहाँ दुर्गा माँ के नाम पर एक छोटा सा मंदिर बना दिया, भक्तो मंदिर निर्माण के बाद पता चला की यहाँ पहले से ही भगवान शिव और माँ पार्वती विराजमान हैं. गुफा के अंदर शिवलिंग और एक पत्थर पर माँ पार्वती की आकृति पहले से विराजित है।
भक्तो मंदिर के बारे में एक अन्य कथा भी प्रचलित है, कहा जाता है कि, सैंकड़ो वर्षो पूर्व यहाँ सड़क बनाने का कार्य किया जा रहा था, जिसका ठेकेदार कोई पठान था, सड़क जैसे ही बनने को तैयार होती तो कुछ न कुछ बाधा आ जाती, पठान बहुत परेशान हो गया. फिर एक रात माँ दुर्गा ने पठान को स्वप्न में दर्शन दिए. अतः उसने माँ के निर्देशानुसार सवा रुपया निकलकर माँ के लिए रख दिया और सड़क कार्य में आ रही सभी बाधाओं को दूर कर निर्माण कार्य पूर्ण होने पर मंदिर बनवाने की माँ से मन्नत मांगी. भक्तो, माता की कृपानुसार उसका सड़क कार्य बिना बाधा के पूर्ण हुआ और फिर उसने भी यहां सड़क के किनारे वर्तमान में स्थित भव्य मंदिर के निर्माण में सहयोग दिया।
मंदिर में अन्य देव मूर्तियां व मंदिर परिसर:
भक्तो मंदिर के गर्भ गृह में माँ दुर्गा का विग्रह है, जिनकी पूजा भक्त बड़ी ही श्रद्धा भाव के साथ करते हैं. भक्तो मंदिर में बहुत प्राचीन शिवलिंग है और पार्वती माता की प्रतिमा एक पत्थर पर उभरी हुयी है, यहाँ माता दुर्गा के साथ-साथ शिव और पार्वती की पूजा भी लोग बड़ी श्रद्धा से करते हैं, ये एक प्राचीन सिद्धपीठ है, भक्तो, यहाँ हनुमान जी की भी सुन्दर मूर्ति विराजमान है, पहले लोग इस स्थान को जोगी का झोंपड़ा के नाम से पुकारा करते थे, कई पीढ़ी पहले यहाँ कोई साधु जोगी तपस्या करते थे, उन्होंने यहाँ एक झोंपड़ा बनाया हुआ था, आस-पास से गाँव वाले जोगी बाबा से आग ले जाया करते थे, क्यूंकि पहले आग सुलगाने के लिए माचिस की व्यवस्था तो थी नहीं इसलिए जब खाना बनाना हो या अन्य कार्य में आग की आवश्यकता गाँव वालो को होती थी तो बाबा के पास धुनें में से आग ले जाया करते थे। भक्तो, मन जाता है कि आज भी मंदिर में वह धुनी हमेशा जलती रहती है, जिन श्रद्धालुओं को यहाँ पर सामूहिक पूजा या संकीर्तन करना हो उसके लिए भी यहाँ प्रयाप्त सुन्दर स्थान मंदिर से निचे उतरकर बना हुआ है जहाँ पर लोग भंडारे का आयोजन भी करते हैं, भक्तो, मंदिर परिसर बहुत विशाल तो नहीं है, पर यहाँ के वातावरण में एक दिव्य ऊर्जा प्रवाहित हो रही है, यहाँ पहुंचकर दर्शन करते ही मन शांत हो जाता है और एक अलग ही शक्ति का अनुभव होता है, मंदिर के पास पहाड़ी से गिरता हुआ अत्यधिक दर्शनीय प्रतीत होता है, मंदिर के समीप पत्थरों में से होकर बहता हुआ खो नदी का निर्मल जल मन को अपनी और आकर्षित करता है, मंदिर के चारो और का दृश्य बहुत ही सुन्दर है।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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