व्यवहारभानु (कक्षा 01) [भूमिका-1] ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्रजक

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भूमिका
मैंने परीक्षा करके निश्चय किया है कि जो धर्मयुक्त व्यवहार में ठीक-ठीक वर्त्तता है उसको सर्वत्र सुखलाभ और जो विपरीत वर्त्तता है वह सदा दुःखी होकर अपनी हानि कर लेता है। देखिये, जब कोई सभ्य मनुष्य विद्वानों की सभा में वा किसी के पास जाकर अपनी योग्यता के अनुसार नम्रतापूर्वक 'नमस्ते' आदि करके बैठ के दूसरे की बात ध्यान से सुन, उसका सिद्धान्त जान निरभिमानी होकर युक्त प्रत्युत्तर करता है, तब सज्जन लोग प्रसन्न होकर उसका सत्कार और जो अण्डबण्ड बकता है, उसका तिरस्कार करते हैं।
जब मनुष्य धार्मिक होता है तब उसका विश्वास और मान्य शत्रु भी करते हैं और जब अधर्मी होता है तब उसका विश्वास और मान्य मित्र भी नहीं करते। इसमें जो थोड़ी विद्या वाला भी मनुष्य श्रेष्ठ शिक्षा पाकर सुशील होता है उसका कोई भी कार्य्य नहीं बिगड़ता।
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व्यवहारभानु ॥ Vyavaharabhanu ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक
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आर्योद्द्येश्यरत्नमाला ॥ Aaryoddyeshyaratnamala ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक
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शंका समाधान ~स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजक
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पता-
दर्शन योग महाविद्यालय,
आर्यवन, रोजड, सबरकांठा, गुजरात
Mob-9409415011, 9409615011
Email : [email protected]
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Web: https://darshanyog.org/
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