बिहार के इस मंदिर में माता आर्शीवाद में देती है नौकरी! लोग तनख्वाह की पहली राशि देते हैं चढ़ावा

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गौरव सिंह/भोजपुर. बिहार के आरा में माता रानी का एक ऐसा मंदिर है, जो बेरोजगारों को आशीर्वाद में रोजगार देती है. कहा जाता है कि इस मंदिर और यहां मौजूद देवी का प्रभाव ऐसा है कि इस मंदिर के नजदीक जितने भी गांव हैं वहां हर घर में एक युवक फौज में या किसी राज्य में पुलिस के रूप में कार्यरत है. माता और भक्तों के बीच रिश्ता एक तरफ से नहीं चलता बल्कि इस माता के भक्त भी अपने मां का ख्याल रखते है. तब ही तो कभी सिर्फ एक कमरे में रहे इस मंदिर को आज भव्य और दर्शनीय बना चुके है.

दूर-दूर से माता के भक्त मनोकामना मांगने आते है और मनोकामना पूर्ण हो जाने पर दोबारा धन्यवाद भी करने जरूर आते है. आरा से 20 किलोमीटर के दूरी पर पिपरा गांव में मौजूद है महामाया माई का मंदिर. माता की माया अपनी सभी भक्तों पर वर्षों से रही है. जिसके वजह से महामाया माई के नाम से जानी जाती है ये देवी. मंदिर के आगे बढ़ा सा मैदान है. जिसमें युवक नौकरी के लिए दिन-रात लगकर फिजिकल की तैयारी करते हैं.

बेरोजगार युवकों को आशीर्वाद में मिलता है देश सेवा का मौका
कहा जाता है कि इस मंदिर के मैदान में लगातार कई पीढ़ी से स्थानीय लोग मिल्ट्री, सिपाही, पारा मिल्ट्री में भर्ती होने के लिए तैयारी करते हैं.साथ में इस मंदिर में झाड़ू देना साफ-सफाई का कार्य भी करते हैं. जिसके वजह से माता अपने भक्तों को आशीर्वाद के रूप में फौजी या सिपाही की नौकरी देती है. पिपरा गांव के हर घर में लोग मिल्ट्री,पारा मिल्ट्री या किसी ना किसी राज्य में सिपाही, दरोगा के पद पर तैनात है. पिपरा ही नहीं पास के गांव शलेमपुर, बेहरा, अगरसंडा, पवट, पुरुषोत्तमपुर इत्यादि गांव के लड़के अपने नौकरी के समय मे इस फील्ड में आकर तैयारी करते है और बदले में महामाया माई नौकरी देती है.

माता और भक्त दोनो तरफ से चलता लेन-देन
गांव के नौकरी करने वाले युवा कहते हैं कि महामाया माई के फील्ड में जो भी नौकरी की तैयारी करता है. उसकी नौकरी हो जाती है तो अपना पहला तनख्वाह मां के मंदिर निर्माण में चंदा के रूप में देता है.जिसके वजह से थोड़ा-थोड़ा करते 15-20 सालो में ये मंदिर भव्य बन चुका है. अब यहां नौरात्री में दूर-दूर से लोग दर्शन करने और मनोकामना मांगने आते है.मन्दिर की ख्याति बहुत ज्यादा फैल चुकी है.

मन्दिर के पुजारी की मांग
मन्दिर में वर्षो से पूजा करने वाले पुजारी जय शंकर पाठक ने बताया कि यहां मां कब अवतार ली है इसका कोई इतिहास नहीं है. कोई आज तक नहीं बता पाया है की ये माता कब से यहां बिराजमान है. हमलोग इतना सुने है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां बहुत घना जंगल था. उसी समय से जगंल के बीच महामाया माई विराजमान है. पुजारी ने इस मंदिर के बारे में कहा कि माता की जितनी चलती है. उस हिसाब से मंदिर उपेक्षा का शिकार हैं. मंदिर कमेटी जितना जुटा पाती है. उतना ही इसका विकास हो पाता है जिला प्रसाशन के द्वारा कभी ध्यान नहीं दिया गया. अगर तीर्थ अस्थल घोषित कर दिया जाता तो ख्याति के साथ रोजगार का भी साधन बढ़ता.

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