तेरी छत्रछाया भगवन मेरे सिर पर हो ||✍️ सारस्वत कवि आचार्य श्री विभवसागर जी कृत||🎙️ROOPESH JAIN ||

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तेरी छत्रछाया भगवन मेरे सिर पर हो
मेरा अंतिम मरण समाधि तेरे दर पर हो।।
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रचयिता --
सारस्वत कवि आचार्य श्री 108 विभवसागर जी मुनिराज

गायन
रूपेश जैन

संगीत
पंकज ठाकुर

ध्वनिमुद्रण
स्वरदर्पण स्टूडियो जबलपुर

प्रस्तुति
R .J.CREATIONS...AND ..VAISHALI CESSETTES
संपर्क
9425882104
9926048017
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समाधि मरण प्रत्येक जैन श्रमण एवं श्रावक के जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है।
सम्पूर्ण जीवन त्याग,तप, संयम, साधना,पूर्वक जीकर अंतिम समय मे पूर्ण सजगता से अपनी जीर्ण शीर्ण एवम नश्वर देह का समतापूर्वक त्याग करना संलेखना या समाधि मरण है।
सम्पूर्ण संयममय जीवन मे समाधि प्राप्त होना जिनालय पर स्वर्ण शिखर चढ़ने के समान है।
परम पूज्य सारस्वत कवि आचार्य गुरुदेव श्री विभवसागर जी द्वारा रचित अनेको अतुल्य एवं अद्भुत रचनाओं में समाधि भक्ति ऐसी कालजयी रचना है जो सम्पूर्ण विश्व मे प्रत्येक जैन के हृदयों में बसी हुई है।
आचार्य गुरुदेव का अनमोल चिंतन एक क्षपक के परम विशुद्ध भावों एवं शुभोपयोग को इतने मार्मिक रूप से कहते हैं कि सुनने वाले का हृदय अभिभूत हो जाता है।
ये कृति नित्यप्रति सुनने से हम सभी के हृदय में जीवन को सार्थक करने की भावना बलवती बने और हम सजगता से जीवन जिये इसी भावना के साथ ये भक्ति काव्य आप सभी के लिए प्रस्तुत है।
इसे सुनिये और अपने भावों की अभिव्यक्ति अवश्य कीजिये।
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