C.G. PANCHGAVY CHIKITSA SAMMELAN (छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय तृतीय पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन) | Dr. NIRANJAN VERMA | PART-10 | स्वस्थ्य रहने के लिए शरीर को जानने और भोजन को पहचानने की आवश्यकता
रायपुर। छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर असोसिएशन द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय तृतीय पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन रविवार 4 फरवरी 2024 को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय सभागृह रायपुर में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता गव्यसिद्ध आचार्य एवं गुरूकुलपति पंचगव्य विद्यापीठम् कांचीपुरम् तमिलनाडु डॉ. निरंजन वर्मा द्वारा पंचगव्य चिकित्सा एवं गौ विज्ञान पर विशेष व्याख्यान व मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि गाय की सुरक्षा, सरंचना व संवर्धन के लिए गाय से आर्थिक स्वावलंबी व्यवस्था पर कार्य करने की आवश्यकता है। गाय का महत्व चिकित्सा, कृषि, शिक्षा सहित अन्य सभी क्षेत्रों में है। आज पूरा विश्व विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है और सभी को चिकित्सा की आवश्यकता है। देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं में खर्च हो रहा है। गाय को स्वास्थ्य से जोड़ दिया जाए तो देश के नागरिक स्वस्थ्य रहेंगे और गाय का भी संरक्षण व संवर्धन होगा। उन्होंने बताया कि पंचगव्य चिकित्सा हमारी वैदिक शास्त्रों में वर्णित एक पुरानी एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है। देश में आज 10 हजार से ज्यादा गव्यसिद्ध पंचगव्य चिकित्सा पद्धति से कैंसर, सिकल सेल जैसे जटिल से जटिल बीमारियों का ईलाज कर रहे है और इसके अद्भूत एवं सुखद परिणाम भी मिल रहा है। उन्होंने पंचगव्य चिकित्सा से स्वस्थ हुए विभिन्न मरीजों के उदाहरण प्रस्तुत किए।
डॉ. निरंजन वर्मा ने कहा कि स्वस्थ्य रहने के लिए शरीर को जानने और भोजन को पहचानने की आवश्यकता है। दुनिया में सबसे सरल विज्ञान चिकित्सा शास्त्र है। महर्षि वाग्भट्ट ने घर को स्वस्थ्य रखने के लिए तीन सूत्र दिए हैं। जिसमें घर के बाहर गाय, आंगन में तुलसी और घर के एक कोने में दुनिया का सबसे बेहतर चिकित्सालय रसोई तीन सुरक्षा चक्र है। जब तक भारत के घरों में तीनों सुरक्षा चक्र थे, भारत दुनिया का सबसे स्वस्थ देश था, लेकिन आज लगभग पूरा देश बीमार है और आज फिर से तीनों सुरक्षा चक्र को स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने छत्तीसगढ़ सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पायी जाने वाली गऊवंश की विशेषता और उनके महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारतीय गऊवंश के सिंघों पर किए गए शोध के विषय में विस्तार से जानकारी दी। डॉ. वर्मा ने कहा कि गाय और गाय से प्राप्त गव्य चन्द्रमा की तरह सरल, सुंदर और शीतल है तथा सूर्य में मिलने वाले सभी गुण गाय में होते है। उन्होंने गाय में पायी जाने वाली सूर्य केतु नाड़ी के कार्य, महत्व एवं उपयोगिता की विस्तार से जानकारी दी। गाय के गोबर से पानी, घी से पर्यावरण के शुद्धिकरण के प्रयोग के बारे में बताया। उन्होंने आकड़ों के माध्यम से बताया कि जहां गाय की संख्या अधिक है, वहां चेतना का विकास होता है और अपराधों की संख्या कम है। पंचमहाभूतों का संतुलन बिगडऩे से बीमारियां होती है और इसका संतुलन पंचगव्य से संभव है। उन्होंने स्वस्थ रहने के लिए नियमित भस्म के पानी का सेवन करने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि पंचगव्य के सेवन से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। साथ ही रसायनिक दवाईयों के दुष्प्रभाव को दूर करने में पंचगव्य कारगर है। हमारे पूर्वजों ने गाय के विज्ञान को समझकर ही गाय को माँ कहा। इस दौरान उपस्थित श्रोताओं के जिज्ञासों का समाधान गुरूजी द्वारा किया गया।
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