3:46 = Deeksha or no Deeksha? / दीक्षा ज़रूरी है या नहीं?
5:16 = What does Mahadev say about the Panchakshari Mantra? / महादेव पंचाक्षरी मंत्र के बारे में क्या कहते हैं?
5:42 = Power of Panchakshari Mantra / पंचाक्षरी मंत्र की शक्ति
16:08 = Adhikari Kaun? / अधिकारी कौन?
32:40 = Agar yaha tak aaye hai... / अगर यहाँ तक आ गए हैं...
33:12 = Namah Shivaye? Shivaye Namah? Or, Om Namah Shivaye? / नमः शिवाय? शिवाय नमः? या ॐ नमः शिवाय?
36:46 = Stri ka adhikaar? / स्त्री का अधिकार?
37:19 = Shiv Bhakt ka Pujan? / शिवभक्त का पूजन?
पंचाक्षरी मंत्र के लिए दीक्षा अनिवार्य (जरूरी) नही है लेकिन रिकमेंडेड है, ख़ासकर अगर आप मंत्र का पुरुशचरण - अनुष्ठान करना चाहते है। योग्य गुरु ना मिलने की स्तिथि में "देव दीक्षा विधान" से भगवान दक्षिणमुखी (भगवान शिव का ही एक स्वरूप) से मंत्र ग्रहण करे और पंचाक्षरी मंत्र की साधना करे।
देव दीक्षा विधान (क्या है? कैसे करे?) - • Dev Deeksha Vidhaan – When Shiv Becomes Yo...
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Source: Shiv Mahapuraan
महादेव कहते है -
हे प्रिये! मैं तुमसे एक और रहस्यमय बात कहता हूँ, इसे [सदा] गुप्त रखना चाहिये। जिस किसी भी नास्तिक अथवा पशुतुल्य प्राणीको इसे नहीं बताना॥ ६१॥
सदाचारसे हीन, पतित और अन्त्यजका उद्धार करनेके लिये कलियुगमें पंचाक्षर-मंत्र से बढ्कर दूसरा कोई उपाय नहीं है। चलते-फिरते, खड़े होते अथवा स्वेच्छानुसार कर्म करते हुए अपवित्र या पवित्र पुरुषके जप करनेपर भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता॥ ६२-६३ ॥
आचारहीन तथा षडध्वशोधनसे रहित पुरुषोंके लिये और जिसे गुरुसे मन्त्रकी दीक्षा प्राप्त नहीं हुई उनके लिये भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता है॥ ६४॥
अन्त्यज, मूर्ख, मूढ़, पतित, मर्यादारहित और नीचके लिये भी यह मन्त्र निष्फल नहीं होता। किसी भी अवस्थामें पड़ा हुआ मनुष्य भी, यदि मुझमें उत्तम भक्तिभाव रखता है, तो उसके लिये यह मन्त्र निःसंदेह सिद्ध होगा ही, किंतु दूसरे किसी के लिये वह सिद्ध नही हो सकता ॥ ६५-६६॥
प्रिये! इस मन्त्रके लिये लग्न, तिथि, नक्षत्र, वार और योग आदिका अधिक विचार अपेक्षित नहीं है। यह मन्त्र कभी सुप्त नहीं होता, सदा जाग्रत् ही रहता है। यह महामन्त्र कभी किसीका शत्रु नहीं होता। यह सदा सुसिद्ध, सिद्ध अथवा साध्य ही रहता है॥ ६७-६८॥
सिद्ध गुरुके उपदेशसे प्राप्त हुआ मन्त्र सुसिद्ध कहलाता है। असिद्ध गुरुका भी दिया हुआ मन्त्र सिद्ध कहा गया है। जो केवल परम्परासे प्राप्त हुआ है, किसी गुरुके उपदेशसे नहीं मिला है, वह मन्त्र साध्य होता है। जो मुझमें, मन्त्रमें तथा गुरुमें अतिशय श्रद्धा रखनेवाला है, उसको मिला हुआ मन्त्र किसी गुरुके द्वारा साधित हो या असाधित, सिद्ध होकर ही रहता है, इसमें संशय नहीं है ॥ ६९-७०॥
इसलिये अधिकारकी दृष्टिसे विध्नयुक्त होनेवाले दूसरे मंत्रोंको त्यागकर विद्वान् पुरुष साक्षात् परमा विद्या पंचाक्षरीका आश्रय ले । दूसरे मन्त्रोके सिद्ध हो जानेसे ही यह मन्त्र सिद्ध नहीं होता। परंतु इस महामन्त्रके सिद्ध होनेपर वे दूसरे मन्त्र अवश्य सिद्ध हो जाते हैं॥ ७१-७२॥
शिवस्वरूप मन्त्रको धारण करके वह शिव ही हो जाता है, शिवभक्तका शरीर शिवरूप ही है । अत: उसकी सेवा में तत्पर रहना चाहिये॥ १३२॥
जो क्रमशः जितनाजितना शिवमन्त्रका जप कर लेता है, उसके शरीरको उतना ही उतना शिवका सामीप्य प्राप्त हो जाता हैं इसमें संशय नहीं है। शिवभक्त स्त्रीका रूप देंवी पार्वतीका ही स्वरूप है। वह जितना मन्त्र जपती है, उसे उतना ही देवीका सांनिध्य प्राप्त होता।
ब्राह्मणोंके लिये आदिमें प्रणवसे युक्त पंचाक्षरमन्त्र अच्छा बताया गया है। फलकी प्राप्तिके लिये दीक्षापूर्वक गुरुसे मन्त्र ग्रहण करना चाहिये। कलशसे किया हुआ स्नान, मन्त्रको दीक्षा, मातृकाओंका न्यास, सत्यसे पवित्र अन्तःकरणवाला ब्राह्मण तथा ज्ञानी गुरु--इन सबको उत्तम माना गया है ॥ ४०-४१॥
द्विजोंके लिये "नमः शिवाय" के उच्चारणका विधान है । द्विजेतरों के लिये अन्तमें नमः-पदके प्रयोगको विधि है अर्थात् वे “शिवाय नमः” इस मन्त्रका उच्चारण करें। स्त्रियोंके लिये भी कहीं-कहीं विधिपूर्वक अन्तमें नमः जोड़कर उच्चारणका ही विधान है अर्थात् कोई-कोई ऋषि ब्राह्मणक स्त्रियोंके लिये नमःपूर्वक शिवायके जपकी अनुमति देते हैं अर्थात् वे “नमः शिवाय” का जप करें। पंचाक्षर-मन्त्रका पाँच करोड़ जप करके मनुष्य भगवान् सदाशिवके समान हो जाता है।
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महादेवजीने कहा--देवि ! कलिकालके मनुष्य मेरी परम मनोरम पंचाक्षरी विद्याका आश्रय ले भक्तिसे भावितचित्त होकर संसार-बन्धनसे मुक्त हो जाते हैं॥ ४॥
जो अकथनीय और अचिन्तनीय हैं-उन मानसिक, वाचिक और शारीरिक दोषोंसे जो दूषित, कृतघ्न, निर्दय, छली, लोभी और कुटिलचित्त हैं, वे मनुष्य भी यदि मुझमें मन लगाकर मेरी पंचाक्षरी विद्याका जप करेंगे, उनके लिये वह विद्या ही संसारभयसे तारनेवाली होगी। देवि! मैंने बारबार प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही है कि भूतलपर मेरा पतित हुआ भक्त भी इस पंचाक्षरी विद्याके द्वारा बन्धनसे मुक्त हो जाता है॥५-७॥
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कोई पतित हो या अपतित, वह इस पंचाक्षर मन्त्रके द्वारा मेरा पूजन करे। मेरा भक्त पंचाक्षर मन्त्रका उपदेश गुरुसे ले चुका हो या नहीं वह क्रोधको जीतकर इस मन्त्रके द्वारा मेरी पूजा किया करे। जिसने मन्त्रकी दीक्षा नहीं ली है, उसकी अपेक्षा दीक्षा लेनेवाला पुरुष कोटि-कोटि गुणा अधिक माना गया है। अतः देवि! दीक्षा लेकर ही इस मन्त्रसे मेरा पूजन करना चाहिये ॥ १७-१८ ॥
जो इस मन्त्रकी दीक्षा लेकर मैत्री, मुदिता [करुणा, उपेक्षा] आदि गुणोंसे युक्त तथा ब्रह्मचर्यपरायण हो भक्तिभावसे मेरा पूजन करता है, वह मेरी समता प्राप्त कर लेता है । इस विषयमें अधिक कहनेसे क्या लाभ? मेरे पंचाक्षर-मन्त्रमें सभी भक्तोंका अधिकार है। इसलिये वह श्रेष्ठतर मन्त्र है। पंचाक्षरके प्रभावसे ही लोक, वेद, महर्षि, सनातनधर्म, देवता तथा यह सम्पूर्ण जगत् टिके हुए हैं॥ १९-२१॥
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