वह जो देवता होना चाहता था... 'ईश्वर और बाज़ार’ वाली कवयित्री Jacinta Kerketta से संवाद | Sahitya Tak

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अब नहीं घुसते वे
तुम्हारे समुदाय के भीतर
बर्बर तरीके से
तलवार चलाते हुए
वे घुसते हैं तुम्हारे भीतर
तुम्हारे ही
भले की बात करते हुए.... यह कविता जसिंता केरकेट्टा की है. जसिंता केरकेट्टा आदिवासी संवेदना और सरोकारों की नई पीढ़ी की कवयित्री हैं. उनका जन्म झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खुदपोस गांव में एक ग़रीब आदिवासी परिवार में हुआ. हाट-बाज़ार में इमली बेचकर परिवार को आर्थिक सहयोग देने के बीच उन्होंने अपनी लगन से पढ़ाई जारी रखी और लगातार कठिनाइयों का सामना किया. कॉलेज की पढ़ाई के लिए उनकी मां ने ज़मीन गिरवी रख उन्हें पैसे दिए. पढ़ाई के ख़र्च के लिए कई छोटे-मोटे काम करती रहीं. संघर्ष के इन्हीं दिनों में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू की जहां उनका व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत दुःख में अभिव्यक्त होता हुआ अपने समाज के विमर्श को आगे लेकर बढ़ा. आदिवासी जन-जीवन पर मंडराते सभ्यता-प्रेषित ख़तरों को पहचानना, सीधे- सरल ढंग से उन्हें शब्दों में अंकित करना और नागर केन्द्रों से जंगलों-पहाड़ों की तरफ़ बढ़ते विकास की आक्रामक मुद्राओं का सशक्त प्रतिवाद गढ़ना जसिंता केरकेट्टा की कविताओं की विशेषताएं रही हैं. उनकी कविताएं अपनी सहज और संवादपरक मुद्रा में आदिवासी समाज की पीड़ाओं को समग्रता के साथ हम तक पहुंचाती रही हैं. इन कविताओं में उनके इस मूल स्वर के साथ कुछ और भी जुड़ा है.
‘ईश्वर और बाज़ार’ संग्रह में संकलित उनकी कई कविताएं ऐसी हैं जो शोषण के चालाक षड्यंत्रों में ईश्वर की अवधारणा और असहाय जन-मानस में उसके भय की भूमिका को चीन्हती हैं. भीतर और बाहर की कई जकड़नों में धर्म, ईश्वर और आस्था ने जिस तरह मनुष्य-विरोधी ताक़त के रूप में काम किया है, वह बृहत् भारतीय समाज की विडम्बना है; लेकिन आदिवासी साधनहीनता पर उनका प्रभाव और भी घातक होता है. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 200 पृष्ठों के संग्रह 'ईश्वर और बाजार' का मूल्य 200 रुपए है. इस संकलन की कविताओं का तेवर देखिए-
‘मज़दूर जब अपने अधिकार के लिए उठे
तो कुछ ईश्वर भक्तों ने उनसे
हाथ जोड़कर प्रार्थना करने को कहा.’
और
‘धीरे-धीरे हर हिंसा हमारे लिए
ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा बन गई....' इस विडम्बना को जसिंता की कविताएं हर संभव कोण से पकड़ने का प्रयास करती हैं. इनका पहला हिन्दी-इंग्लिश द्विभाषिक काव्य-संग्रह ‘अंगोर’ का अनुवाद जर्मन, इतालवी और फ़्रेंच भाषाओं में प्रकाशित हुआ. दूसरा हिन्दी-इंग्लिश द्विभाषिक काव्य-संग्रह ‘जड़ों की ज़मीन’ का अनुवाद अंग्रेज़ी और जर्मन भाषा में प्रकाशित हुआ. ‘ईश्वर और बाज़ार’ जसिंता का तीसरा काव्य-संग्रह है. यह संग्रह इतना अद्भुत है कि साहित्य तक पर लेखकों से उनकी चर्चित पुस्तक पर आधारित संवाद कार्यक्रम 'शब्द-रथी' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने जसिंता केरकेट्टा से उनके काव्य संग्रह 'ईश्वर और बाजार' पर लंबी बातचीत के साथ ही इस अनोखी कवयित्री के जीवन, उनकी सोच, उनकी कविताएं और रचना यात्रा के बारे जाना. आप भी सुनिए यह बातचीत.
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