महाबोधि मंदिर: जहां हुआ बौद्ध धर्म का उदय I इतिहास के अनजाने पहलू

Описание к видео महाबोधि मंदिर: जहां हुआ बौद्ध धर्म का उदय I इतिहास के अनजाने पहलू

प्राचीन से लेकर आधुनिक काल तक, बिहार राज्य में इतिहास के कुछ ऐसे अंश दर्ज हुए हैं, जिन्होंने विश्व इतिहास में भी अपनी छाप छोड़ीI इन्हीं में प्रमुख है बौद्ध धर्म का विकास, जिसके बीज को बोधगया में स्थित महाबोधि मन्दिर में बोया था I मगर क्या आप जानते हैं, कि इस मंदिर के और भी कई पहलू हैं?

बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग सौ किलोमीटर दक्षिण महाबोधि मंदिर में ढाई हज़ार वर्ष पहले राजकुमार सिद्धार्थ को बोध या प्रबोधन की प्राप्ति हुई थीI आने वाले वर्षों में, ये बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाने लगा- जिनमें से शेष तीन हैं- नेपाल में उनकी जन्मस्थली लुम्बिनी, वाराणसी के निकट सारनाथ, जहां उन्होंने पहली बार उपदेश दिया और कुशीनगर, जहां उन्होंने परिनिर्वाण प्राप्त किया था I आईये, आपको इस प्राचीनतम मंदिर की यात्रा पर ले चलते हैं:

261 ईसा पूर्व में कलिंग के युद्ध में विजयी होने के बाद, जब तीसरे मौर्य सम्राट अशोक को हिंसा से हुई हानि का आभास हुआ, तब अहिंसा का पथ लेकर उन्होंने बौद्ध धर्म को ना सिर्फ अपनाया, बल्कि अपने शासन का मुख्य धर्म भी बनाया I इसी के चलते सन 250 ईसा पूर्व को सम्राट अशोक इस स्थान पर आए, और एक मंदिर और धर्मशाला बनाने का प्रण लियाI हालांकि, वज्रासन या हीरे के सिंहासन के अलावा यहाँ उस दौर का अब कुछ उपलब्ध नहीं है, मगर ये वही स्थान है, जहां से अशोक ने बौद्ध मन्दिरों के निर्माण का कार्य आरम्भ किया था I

भले ही महाबोधि मंदिर के निर्माण का अधिकाँश श्रेय सम्राट अशोक को जाता हो, मगर इसने आने वाली शताब्दियों में कई बदलाव देखे हैंI पहले थे शुंग, जिन्होंने सन 150 ईसा पूर्व में यहाँ पर रेलिंग, स्तम्भ और नक्काशीदार पैनल जैसे नए संरचनाएँ लगवाएI मगर वर्तमान में जो हम मंदिर देखते हैं, वो दरअसल पांचवीं और छठी शताब्दी के बीच गुप्त शासकों द्वारा निर्मित है, जिन्होंने ईंट के ज़रिये कुषाण शैली में मंदिर का पुनर्निर्माण कियाI ये एक पिरामिड के आकर का है, जिसके ऊपर स्तूप का कलश देखा जा सकता है I ये इन्ही गुप्त शासकों की देन थी, जिसके कारण महाबोधि मंदिर भारत के सबसे पुराने ईंट द्वारा निर्मित इमारतों में गिनी जाती है I

नवीं शताब्दी तक, जब बौद्ध धर्म भारतीय उपमहाद्वीप से विलुप्त हो रहा था, वो उत्तर और पूर्वी भारत में पाल एवं सेना शासकों के कारण तेरह शताब्दी तक कायम रहा I ये सिलसिला तब तक जारी रहा, जब सेना शासक बख्तियार खिलजी के दिल्ली सल्तनत की फ़ौज से पराजित हुई I मगर दिलचस्प बात ये है, कि महाबोधि मंदिर उस खिलजी के हाथों से बचा रहा, जिसने नालंदा और विक्रमशिला के महान विश्वविद्यालयों को ख़ाक कर दिया थाI मगर बौद्ध धर्म के पतन के कारण, इस मंदिर की गरिमा विलुप्त हो गयी थीI उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों और बर्मी शाही परिवार के संयुक्त कार्य के कारण मंदिर को वर्तमान रूप में वापस लाया गया था I

बहुत लोग आज भी इस बात ये अनजान हैं, कि महाबोधि मंदिर के बाहर जो बोधि वृक्ष है, ये दरअसल वो वृक्ष नहीं हैं, जहां पर गौतम बुद्ध ने तपस्या की थीI ये दरअसल उस मूल वृक्ष का वंशज है, जिसको कई बार विनाश का सामना करना पड़ा थाI वहीँ महाबोधि मंदिर के पुनर्निर्माण के दौरान, मशहूर पुरावेत्ता सर एलेग्जेंडर कनिंघम ने सन 1881 ने यहाँ नया वृक्ष लगाया, जो आज भी यहाँ देखा जा सकता है I

अंग्रेजों के पुनर्निर्माण के पूरा होने के बाद, महाबोधि मंदिर शैव पंडितों के अंतर्गत आया , जिसके कारण बौद्ध अनुयायियों के यहाँ आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिया गया थाI ये श्रीलंका के मशहूर बौद्ध पुनारुत्थानवादी अनागारिका धरमपाल की ही देन थी, जो मामले की तेह तक गए और बौद्ध के इस तीर्थस्थली को स्वतंत्र करने में सक्रिय हो गए I करीब पचास साल बाद, सन 1949 में, बिहार सरकार ने इसके प्रशासन का दायित्व लिया और फिर एक समिति का गठन भी किया I कई बदलावों के बाद, आज इसका प्रशासन इसके मुख्य भिक्षु भिक्कू चलिन्दा के हाथों में हैंI

पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में ऐसे कई बौद्ध मंदिर हैं, जिनकी रूपरेखा महाबोधि मंदिर से प्रेरित हुई है, फिर चाहे वो चीन का जेंजुए मंदिर या थाईलैंड का वाट येट चोट मंदिरI सन 2002 में महाबोधि मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में दर्ज हुआ I आज महाबोधि मंदिर विश्व के उन प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है, जो प्रत्येक वर्ष भारत और विश्व से अनेक तीर्थयात्रियों को भगवान बुद्ध की शरण में समर्पण करने के लिए आमंत्रित करता है...

Please subscribe to the channel and leave a comment below!

===============

Join us at https://www.livehistoryindia.com to rediscover stories that are deeply rooted in our history and culture.

Also, follow us on -
Twitter:   / livehindia  
Facebook:   / livehistoryindia  
Instagram:   / livehistoryindia  

===============

Комментарии

Информация по комментариям в разработке