अष्ट सिद्धि और उसका रहश्य। Secret Of Asht Siddhi | Asht siddhi kya hai | Types Of Asht Siddhi

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Main topic -
1. Asht Siddhi kya hai ?
2. Asht siddhi ka rahasya
3. Types of Asht siddhi
4. Mahima
5. Anima
6. Garima
7. Laghima
8. Prapti
9. Prakamya
10. Ishatava
11. Vashitva
13. Secret of eight siddhi

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दोस्तो संस्कृत में एक श्लोक है

अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा |

प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ||

अर्थ - अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं|

दोस्तों अब जानते हैं पहली सिद्धि यानी एनिमा के बारे में -

यह अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि हैं, जिसका अर्थ अपने देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से हैं।जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दुसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। ऐसा साधक जब चाहे एक अणु के बराबर सूक्ष्म शरीर धारण करने में सक्षम होता हैं।

दूसरी सिद्धि है  महिमा : दोस्तो यह अणिमा से ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं, जिसमें साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित रूप से बड़ा करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं और विशाल बना सकता है।

तीसरी सिद्धि है गरिमा :

दोस्तों इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं मानो वह कोई चट्टान से जम गया हो।

चौथी सिद्धि है लघिमा : इस सिद्धि के प्रभाव से साधक का शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं। और वह कहीं भी वायु मार्ग से भ्रमण कर सकता है।

पांचवी सिद्धि है प्राप्ति : ईस सिद्धि को प्राप्त कर के साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं यानी साधक के भीतर पल भर में प्रकट होने और अदृश्य होने की शक्ति आ जाती है। साथ ही इस सिद्धि को प्राप्त कर लेने के पश्चात वह जो चाहे प्राप्त कर सकता है।

छठी सिद्धि है प्रकाम्य : ईस सिद्धि को पाकर साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर चाहे सामने वाला व्यक्ति अपने मन के बात कहे या न कहे, उसे सब समझ आ जाता है कि उसके मन में क्या चल रहा है। इसे हम आज की भाषा मे माइंड रीडिंग भी बोल सकते हैं

सातवी सिद्धि है ईशत्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, यानी वह अपने भीतर के ब्रह्म तत्व को समझ लेता है। इसी को हम आत्म ज्ञान की अवस्था भी कह सकते हैं।

आठवी सिद्धि है वशित्व : वशित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।


दोस्तों इन सिद्धियो को प्राप्त करना इतना आसान तो नहीं है लेकिन मुश्किल भी नहीं है। ये विद्याएं आज भी हिमालय आदि में वास करने वाले उच्चकोटि के साधु संतों के पास विद्धमान है। हम चाहे तो सांसारिक जीवन मे रहते हुए भी थोड़ा बहुत इन सिद्धियों पर अपना अधिकार कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है कि हम इसका अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग न करे।

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