श्री काशी विश्वनाथ मंदिर | श्रावण मास विशेष | उत्तरकाशी उत्तराखंड | हर हर महादेव | 4K | दर्शन🙏

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हर हर महादेव भक्तों, हमारे कार्यक्रम दर्शन में आप सभी का तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तों, देव शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ४ महीने के लिए क्षीर सागर में विश्राम करते हैं , कहा जाता है की कार्तिक मॉस में आने वाली देव उठनी एकादशी तक पुरे ब्रह्माण्ड का सारा कार्यभार भगवान शिव सँभालते हैं, वर्ष भर में ये ४ महीने बहुत ही पावन माने जाते हैं, साधु संत इन् चार महीनो में तीर्थ सेवन करते हैं, इनमे भी श्रावण मॉस विशेष है, क्योंकि पूरे वर्ष की भगवान् शिव उपासना का फल मात्र श्रावण मॉस की उपासना से मिल जाता है, अतः श्रावण मॉस में भगवान् महादेव के दर्शन और पूजन अवश्य करे, इसलिए आज हम आपको दर्शन करवाने जा रहे हैं भगवान महादेव के एक बहुत ही दिव्य और प्राचीन मंदिर उत्तरकाशी स्थित ""श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के।

मंदिर के बारे में:
भक्तों ""श्री काशी विश्वनाथ मंदिर"" उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के सबसे प्राचीन एवं सबसे पवित्र मंदिरो में से एक है, जो भागीरथी नदी के तट पर स्थित है मंदिर आस-पास के पहाड़ो के साथ भागीरथी नदी का सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करता है मंदिर की लोकप्रियता के कारण ये मंदिर चार धाम यात्रा मार्गो का हिस्सा है, जो भी तीर्थयात्री चार धाम यात्रा करते हैं वो इस मंदिर के दर्शन भी अवश्य करते हैं। भक्तो श्री काशी विश्वनाथ भगवान् सदा वाराणसी में ही निवास करते हैं, वाराणसी कहते हैं वरुणा और अशी नदियों के संगम को, यहाँ उत्तरकाशी में भी ये संगम ""काशी विश्वनाथ मंदिर "" के समीप हुआ है, इसीलिए भगवान काशी विश्वनाथ जी ने इस स्थान को चुना है, जहाँ 33 कोटि देवी - देवताओ के साथ स्वयं विश्वनाथ भगवान् उत्तरकाशी में विराजते हैं, ये स्थान चारो ओर से चार पर्वतों से घिरा हुआ है ये पर्वत हैं वर्णत पर्वत, इन्द्रकील पर्वत ,ऐरावत पर्वत और बालखिल्य पर्वत कहे जाते हैं.

मंदिर से जुड़ी कथाएँ:
भक्तों, उत्तरकाशी स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के विषय में कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सर्वप्रथम परशुराम जी ने की थी। फिर 1857 में टेहरी की रानी खनेती देवी ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। भक्तों, एक किवदंती के अनुसार कहते हैं कि कलयुग के दूसरे भाग में जब वाराणसी पानी में डूब जाएगी तब ""श्री काशी विश्वनाथ"" को उत्तरकाशी के मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जायेगा।

भक्तों, मंदिर से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार, कल्प के प्रारम्भ में ऋषि मार्कण्डेय जी की आयु मात्र १२ वर्ष की थी पर मार्कण्डेय जी शिव भक्त थे अतः जब यमराज उन्हें १२ वर्ष की अवस्था में लेने आये तो ऋषि मार्कण्डेय ने भगवान् शिव को बाहो में ले लिया और महा मृतुन्जय मंत्र का जाप करने लगे, इस प्रकार जब यमराज मार्कण्डेय को नहीं ले जा पाए तो यमराज ने भगवान् शिव से अनुरोध किया की आपकी सृष्टि में आपके ही नियमो का पालन नहीं होगा तो सृष्टि कैसे चलेगी, मार्कण्डेय की आयु पूरी हो चुकी है इसलिए उसे यमपुरी जाना ही पड़ेगा तब भगवान् शिव जी ने अपनी आयु से एक दिन मार्कण्डेय जी को दे दिया और इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि हमेशा के लिए अमर हो गये.

मंदिर परिसर:
भक्तों, प्रकृति की गोद में स्थित ""श्री काशी विश्वनाथ मंदिर” बहुत ही सुन्दर एवं भव्य मंदिर है, जिसका पुनर्निर्माण होने के बाद भी इसकी प्राचीनता की अनुभूति यहाँ के कण कण में होती है. मंदिर निर्माण में विशेष प्रकार के पत्थरों का प्रयोग किया गया है , मंदिर को साधारण शिल्प कार्य से भी बहुत ही सुन्दर बनाया गया है, मंदिर प्रांगण से चारों ओर का दृश्य तथा भागीरथी नदी के तट पर पर्वतो के मध्य इस दिव्य पौराणिक मंदिर की छटा अत्यधिक शोभनीय है. यहाँ बैठकर भगवान का ध्यान करने में असीम आनंद की अनुभूति होती है, ये स्थान दिव्य ऊर्जा से भरा हुआ है, भक्तो मंदिर के एक ओर पीपल का वृक्ष है, जिसके नीचे भगवान् विष्णु की मूर्ति है, और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने ही शक्ति मंदिर है जो माँ पार्वती को समर्पित है, यहाँ का मुख्य आकर्षण लगभग 26 फुट ऊँचा एक विशाल एवं भव्य त्रिशूल है, जिसे शरीर के पूरे बल से भी हिलाया नहीं जा सकता पर एक ऊँगली से स्पर्श करने पर त्रिशूल में कम्पन्न होने लगता है, ये दिव्य शस्त्र है। कहा जाता है की ये देव-असुर संग्राम के समय का त्रिशूल है ,जिसे माँ शक्ति ने संग्राम में प्रयोग किया था। इसमें परशुराम भगवान् के फरसे भगवान् विष्णु के चक्र और महादेव के त्रिशूल सभी की शक्ति समाहित है।

मंदिर में मुख्य देव व अन्यदेव:
भक्तों, मंदिर के गर्भ गृह में ""श्री काशी विश्वनाथ जी"" माँ पार्वती एवं गणेश जी विराजमान हैं, यहाँ काशी विश्वनाथ जी शिवलिंग की ऊंचाई 63 सेंटीमीटर बताई जाती है, जो दक्षिण मुखी है, कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान परशुराम जी ने की थी. गर्भ गृह के बाहरी कक्ष में नंदी जी महाराज हैं, मंदिर परिसर में ही ऋषि मार्कण्डेय और साक्षी गोपाल जी की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। मंदिर के सामने ही शक्ति मंदिर है जो माँ पार्वती को समर्पित है।

अन्य दर्शनीय स्थल:
भक्तों, यदि आप ""श्री काशी विश्वनाथ मंदिर"" के दर्शनों के लिए आयें तो यहाँ आप चार धाम में से दो धाम जो उत्तरकाशी में ही हैं श्री गंगोत्री और श्री यमनोत्री, की यात्रा कर सकते हैं. उत्तरकाशी में अन्य दर्शनीय स्थल नेलांग घाटी, मनेरी बांध, गरतांग गली, और संगम चट्टी आदि प्रमुख हैं.

श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी

Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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