ब्रह्माण्ड विजय शिव कवचम्। शिव जी का अत्यंत शक्तिशाली कवच~Brahmanda Vijay Shiva Kavacham

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ब्रह्माण्ड विजय शिव कवचम्। शिव जी का अत्यंत शक्तिशाली कवच~Brahmanda Vijay Shiva Kavacham by Narayan sung by BalRam Pandey with pure Sanskrit lyrics 🚩🙏

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।। ब्रह्माण्ड विजय शिव कवचम् ।।

इस कवचम में भक्त, भगवान रुद्र से अपने अंगों की रक्षा करने और सभी दिशाओं से आने वाले खतरे से बचाने की प्रार्थना करता है। यह भगवान शिव का एक दुर्लभ (कवचम्) है। यह ब्रह्म वैवर्त पुराण, गणपति खंड, अध्याय 35 में है। भगवान नारायण द्वारा ऋषि नारद के अनुरोध पर उनको यह कवच दिया गया था। ब्रह्माण्ड विजय श्री शिवकवचम् भगवान शिव की तपस्या करते हुए भगवान परशुराम के वरदान के रूप में प्रकट होता है, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई अस्त्र, शस्त्र, दुर्लभ मंत्र, स्तोत्र और कवचम् दिए जैसे कृष्ण कवचम, पद्म कवचम, दुर्गा कवचम, कालिका कवचम, उपरोक्त ब्रह्माण्डविजय शिव कवचम आदि। ऋषि दुर्वासा ने षडक्षर मंत्र प्रदान करने के बाद यह कवचम् मूल रूप से मत्स्य राज को दिया था। यह वेद की कण्व शाखा में है। यह सबसे गोपनीय है और इसे प्राप्त करना कठिन है। भगवान नारायण भक्ति के साथ इस कवचम् के जप के लाभों का वर्णन करते हैं। इसका पाठ करने से पापों का नाश होता है और मृत्यु से रक्षा होती है। इस कवचम् का दस लाख बार जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और व्यक्ति, वास्तव में स्वयं भगवान रुद्र के समान हो जाता है। इस कवचम् को जाने बिना, कोई व्यक्ति शिव मंत्र का एक करोड़ बार जप करने पर भी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता है। 10 लाख अश्वमेध यज्ञ, 100 राजसूय यज्ञ और अन्य सभी यज्ञ इस कवचम् के 16वें भाग के बराबर नहीं हो सकते। जो व्यक्ति इस शिव कवचम् का जाप करता है वह अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करता है।
।। ब्रह्माण्डविजय श्री शिवकवचम् ।।
नारद उवाच-
शिवस्य कवचम् ब्रूहि मत्स्य राजेन यद्धृतम् ।
नारायण महाभाग श्रोतुं कौतूहलं मम ॥ १॥
श्रीनारायण उवाच-
कवचम् श‍ृणु विप्रेन्द्र शङ्करस्य महात्मनः ।
ब्रह्माण्ड विजयं नाम सर्वाऽवयव रक्षणम् ॥ २॥
पुरा दुर्वाससा दत्तं मत्स्यस्य राजाय धीमते ।
दत्वा षडक्षरं मन्त्रं सर्व पाप प्रणाशनम् ॥ ३॥
स्थिते च कवचे देहे नास्ति मृत्युश्च जीविनाम् ।
अस्त्रेशस्त्रेजलेवह्नौ सिद्धिश्चेन्नास्ति संशयः ॥ ४॥
यद्धृत्वा पठनात् बाणः शिवत्वं प्रापलीलया ।
बभूव शिवतुल्यश्च यद्धृत्वा नन्दिकेश्वरः ॥ ५॥
वीरश्रेष्ठो वीरभद्रो साम्बोऽभूद् धारणाद्यतः ।
त्रैलोक्य विजयी राजा हिरण्यकशिपुः स्वयम् ॥ ६॥
हिरण्याक्षश्च विजयी चाऽभवद् धारणाद्धि सः ।
यद्धृत्वा पठनात् सिद्धो दुर्वासा विश्व पूजितः ॥ ७॥
जैगीषव्यो महायोगी पठनाद् धारणाद्यतः ।
यद्धृत्वा वामदेवश्च देवलः पवनः स्वयम् ॥ ८॥
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्चाऽभवत् विश्वपूजितः ॥ ९॥
ॐ नमः शिवायेति च मस्तकं मे सदाऽवतु ।
ॐ नमः शिवायेति च स्वाहा भालं सदाऽवतु ॥ १॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शिवायेति स्वाहा नेत्रे सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं क्लीं हूं शिवायेति नमो मे पातु नासिकाम् ॥ २॥
ॐ नमः शिवाय शान्ताय स्वाहा कण्ठं सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं श्रीं हूं संसार कर्त्रे स्वाहा कर्णौ सदावतु ॥ ३॥
ॐ ह्रीं श्रीं पञ्चवक्त्राय स्वाहा दन्तं सदावतु ।
ॐ ह्रीं महेशाय स्वाहा चाऽधरं पातु मे सदा ॥ ४॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं त्रिनेत्राय स्वाहा केशान् सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं ऐं महादेवाय स्वाहा वक्षः सदाऽवतु ॥ ५॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मे रुद्राय स्वाहा नाभिं सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं श्रीं ईश्वराय स्वाहा पृष्ठं सदाऽवतु ॥ ६॥
ॐ ह्रीं क्लीं मृतुञ्जयाय स्वाहा भ्रुवौ सदाऽवतु ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ईशानाय स्वाहा पार्श्वं सदाऽवतु ॥ ७॥
ॐ ह्रीं ईश्वराय स्वाहा चोदरं पातु मे सदा ।
ॐ श्रीं ह्रीं मृत्युञ्जयाय स्वाहा बाहू सदाऽवतु ॥ ८॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ईश्वराय स्वाहा पातु करौ मम ।
ॐ महेश्वराय रुद्राय नितम्बं पातु मे सदा ॥ ९॥
ॐ ह्रीं श्रीं भूतनाथाय स्वाहा पादौ सदाऽवतु ।
ॐ सर्वेश्वराय शर्वाय स्वाहा पादौ सदाऽवतु ॥ १०॥
प्राच्यां मां पातु भूतेशः आग्नेय्यां पातु शङ्करः ।
दक्षिणे पातु मां रुद्रो नैरृत्यां स्थाणुरेव च ॥ ११॥
पश्चिमे खण्डपरशुर्वायव्यां चन्द्रशेखरः ।
उत्तरे गिरिशः पातु चैशान्यां ईश्वरः स्वयम् ॥ १२॥
ऊर्ध्वे मृडः सदा पातु चाऽधो मृत्युञ्जयः स्वयम् ।
जले स्थले चाऽन्तरिक्षे स्वप्ने जागरणे सदा ॥ १३॥
पिनाकी पातु मां प्रीत्या भक्तं वै भक्तवत्सलः ॥ १४॥
इति ते कथितं वत्स कवचं परमाऽद्भुतम् ॥ १५॥
दश लक्ष जपेनैव सिद्धिर्भवति निश्चितम् ।
यदि स्यात् सिद्ध कवचो रुद्र तुल्यो भवेद् ध्रुवम् ॥ १६॥
तव स्नेहान् मयाऽऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।
कवचं काण्व शाखोक्तं अतिगोप्यं सुदुर्लभम् ॥ १७॥
अश्वमेध सहस्राणि राजसूय शतानि च ।
सर्वाणि कवचस्यास्य फलं नार्हन्ति षोडशीम् ॥ १८।।
कवचस्य प्रसादेन जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ।
सर्वज्ञः सर्वसिद्धेशो मनोयायी भवेद् ध्रुवम् ॥ १९॥
इदं कवचं अज्ञात्वा भवेत् यः शङ्करप्रभुम् ।
शतलक्षं प्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ॥ २०॥
॥ श्रीब्रह्मवैवर्ते पुराणे गणपतिखण्डे
ब्रह्माण्डविजय श्री शिवकवचम् सम्पूर्णम् ॥

18 पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और देवी श्रीराधा जी की गोलोक-लीला और भगवान राम और जानकी जी की साकेत-लीला की लीलाओं का विस्तृत वर्णन तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन है। अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह है।

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