होलाष्टक क्या होता है | होलाष्टक की कथा | Holastak Kya Hai | kyu manate hai

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होलाष्टक क्या है, 8 दिन क्यों हैं अशुभ, आखिर क्यों नहीं होते इन दिनों में शुभ काम


होली तिथि की गिनती होलाष्टक के आधार पर होती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर आठवें दिन यानी होलिका दहन तक होलाष्टक रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के आठ दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। होलाष्टक के दौरान शुभकार्य करने पर अशुभ होने अथवा बनते कार्य के बिगड़ जाने की संभावना रहती है। इसलिए इस दौरान शुभ कार्यों को टालना ही समझदारी है।

क्या है होलाष्टक?

होलाष्टक का आशय है होली के पूर्व के आठ दिन हैं, जिसे होलाष्टक कहते हैं। धर्मशास्त्रों में वर्णित 16 संस्कार कर्म आदि नहीं किए जाते। जैसे इन दिनों शुरु किए गए कार्यों से कष्ट की प्राप्ति होती है। इन दिनों हुए विवाह से रिश्तों में अस्थिरता आजीवन बनी रहती है अथवा टूट जाती है. घर में नकारात्मकता, अशांति, दुःख एवं क्लेष का वातावरण रहता है।

होलाष्टक की परंपरा

जिस दिन से होलाष्टक प्रारंभ होता है, गली मोहल्लों के चौराहों पर जहां-जहां परंपरा स्वरूप होलिका दहन मनाया जाता है, उस जगह पर गंगाजल का छिड़काव कर प्रतीक स्वरूप दो डंडों को स्थापित किया जाता है। एक डंडा होलिका का एवं दूसरा भक्त प्रह्लाद का माना जाता है। इसके पश्चात यहां सूखी लकड़ियां और उपले लगाए जाने लगते हैं। जिन्हें होली के दिन जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहा जाता है।

क्यों होते हैं ये दिन अशुभ?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन अर्थात फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। इस वजह से इन आठों दिन मानव मस्तिष्क तमाम विकारों, शंकाओं और दुविधाओं आदि से घिरा रहता है, जिसकी वजह से शुरु किए गए कार्य के बनने के बजाय बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को इन आठों ग्रहों की नकारात्मक शक्तियों के कमजोर होने की खुशी में लोग अबीर-गुलाल आदि छिड़ककर खुशियां मनाते हैं। जिसे होली कहते हैं।

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