त्रिया चरित्र जाने नहीं कोई। खसम मार कर ‘सती’ होई।

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त्रिया चरित्र जाने नहीं कोई।

खसम मार कर "सती" होई।।

यह कहावत कोई ऐसे ही नहीं बनी है। इसके पीछे एक लंबी कहानी है। इस कहावत का अर्थ है कि स्त्री का चरित्र एक अबूझ पहेली है, उसे कोई नहीं जान सकता है। वह जलेबी की तरह जटिल व्यक्तित्व की स्वामिनी है जो "कुलटा" होते हुए भी "सती सावित्री" दिखने का प्रयास करती है। वह अपने पति को मारकर "सती" होने का स्वांग रच लेती है। पर ऐसा चरित्र समस्त स्त्रियों का हो, यह जरूरी नहीं है। कुछ स्त्रियां ही ऐसे चरित्र की मालकिन होती हैं, समस्त नहीं। आओ, आज एक कहानी सुनते हैं कि यह कहावत कैसे बनी।



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