नित्य पितृतर्पण की सरल विधि देखें और आप भी करें पितरों को जल अर्पण

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तर्पण को नित्यकर्म भी कहा गया है अपने पितरों के साथ ही दिव्य मनुष्य ऋषियों का तर्पण नित्य प्रतिदिन करना चाहिए इसमें भी आश्विन मास कृष्ण पक्ष के 15 दिनों को श्राद्धपक्ष कहा जाता है इन दिनों में तर्पण अवश्य करना चाहिए इस दृष्टि से यह वीडियो अत्यंत प्रासंगिक है इसमें शास्त्रों के निचोड़ के रूप में परंपरागत विद्वानों के अनुसरण को करते हुए सरलतम तर्पण विधि का उल्लेख किया गया है
#सरल_तर्पण_विधि
आसन पर बैठकर शुद्धि करण हेतु उल्टे हाथ में जल लेकर
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु

कहकर अपने ऊपर तीन बार जल छिड़कें।

फिर नीचे लिखे मन्त्र को बोलबोलकर तीन बार आचमन करें।

ॐ केशवाय नम:
ॐ माधवाय नम:
ॐ नारायणाय नम:

फिर
ॐ गोविन्दाय नम: बोलकर हाथ धो लें

फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुश की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहन कर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें

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अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले
ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थम् अद्य नाम---- गोत्र: उत्पन्न: अहम देव ऋषि पितृ तर्पणम् करिष्ये।

फिर थाली या ताम्र पात्र में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का ध्यान करें।

स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ जैसी पहनी है वैसी ही रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से देवताओं को जल दें

ॐ ब्रह्मादयो देवा: तृप्यन्ताम्
ॐ भू: देवा: तृप्यन्ताम्
ॐ भुवः देवा: तृप्यन्ताम्
ॐ स्व: देवा: तृप्यन्ताम्
ॐ भूर्भुवः स्व: देवा: तृप्यन्ताम्
(ग्रंथों में देवताओं के क्रम से नाम दिए गए हैं जिन्हें एक तंत्रेण संक्षिप्त कर दिया है।)

अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने कुशा के दोनों हाथों के बीच में रखकर
एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य ऋषियों को जल दें

ॐ सनकादय: ऋषिगणा: तृप्यन्ताम्
ॐ भू: ऋषय: तृप्यन्ताम्
ॐ भुवः ऋषय: तृप्यन्ताम्
ॐ स्व: ऋषय: तृप्यन्ताम्
ॐ भूर्भुवः स्व: ऋषय: तृप्यन्ताम्
(ग्रंथों में ऋषियों के क्रम से नाम दिए गए हैं जिन्हें संक्षिप्त कर दिया है।)


इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली या ताम्र पात्र में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें

ॐ आगच्छन्तु मे पितरा: स्वीकुर्वन्तु जलान्जलिम् ।।

फिर कुशा के अग्रभाग को अंगूठे की ओर रखें और पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण करें

(ये तर्पण विधि दिवंगत पितरों के लिए है। जिनके पिता या अन्य जो भी जीवित हों उन्हें छोड़कर आगे के क्रम से तीन पीढ़ी तक के लिए तर्पण करें)

1. अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं पिता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें
ॐ ---गोत्र: मम पिता---- तृप्यताम् (3 बार)

2. अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादाजी (पितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
ॐ ---गोत्र: मम पितामह---- तृप्यताम् (3 बार)

3. अपने गोत्र का उच्चारण करें पिताजी के दादाजी (प्रपितामह) का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
ॐ ---गोत्र: मम प्रपितामह---- तृप्यताम् (3 बार)

4. अपने गोत्र का उच्चारण करें एवं माता का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें
ॐ ---गोत्र: मम माता---- तृप्यताम् (3 बार)

2. अपने गोत्र का उच्चारण करें, दादीजी का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
ॐ ---गोत्र: मम पितामही---- तृप्यताम् (3 बार)

3. अपने गोत्र का उच्चारण करें परदादाजी का नाम लेकर तीन बार उनको तर्पण दें।
ॐ ---गोत्र: मम प्रपितामही---- तृप्यताम् (3 बार)

4. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें, नाना का नाम लेकर उनको तीन बार तर्पण दें।
ॐ ---गोत्र: मम ---- तृप्यताम् (3 बार)

(यही मंत्र आगे सभी के लिए प्रयोग करें बस नाम और गोत्र रिक्त स्थान पर बोल दें) (गुरुजी कहिन you tube channel)

5. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नाना के पिताजी (परनाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।

6. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नाना के दादा (वृद्ध परनाना) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।

7. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानी का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।

8. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानाजी की मां (परनानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।

9. अपने नाना के गोत्र का उच्चारण करें नानाजी की दादी (वृद्ध परनानी) का नाम लेकर तीन बार तर्पण दें।(गुरुजी कहिन you tube channel)

10. अपने गोत्र का उच्चारण करें अपने परिवार के सभी दिवंगत सदस्य का बारी बारी से नाम लेकर
ताऊ
चाचा
कुटुम्ब के अनुसार कोई दिवंगत
भाई
बहन
भाई के बच्चे

फिर
दिवंगत
बुआ,
मामा,
मौसी,
फूफा
व जीजा
कोई दिवंगत हो तो उनका गोत्र व नाम लेकर तर्पण दें

ॐ ----गोत्र: मम ------तृप्यताम् (3 बार)

फिर
पिताजी के मित्र (दिवंगत)
नानाजी के मित्र
स्वयं के मित्र
स्वयं के गुरु
या अन्य कोई हो तो गोत्र व नाम लेकर
*गोत्र याद न हो तो -----
ॐ ---कश्यप गोत्र उत्पन्न: ----- तृप्यताम् / तर्पयामि

तीन-तीन बार तर्पण दें।
(गुरुजी कहिन you tube channel)
अब भगवान सूर्य को अर्घ्य चढ़ाएँ।

*इसके बाद प्रतिदिन गाय, कुत्ते व कौए के लिए रोटी जरूर निकालें तथा चींटियों को आटा डलवाएं
अब आसन के नीचे जल छोड़कर उसका तिलक लगाएं और सभी देवताओं, ऋषियों, पितरों को प्रणाम कर उठ जाएं।

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शास्त्रानुसार ये विधि भी पितरों को संतुष्ट करने वाली क्रिया है।

गुरुजी कहिन you tube channel

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