श्री दशावतार स्तोत्र | Dashavatar Stotram With Lyrics | Dashavatar Mantra With Lyrics | Rajshri Soul

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Experience the divine journey through the ten incarnations of Lord Vishnu with the Dashavatar Stotram only on our ‪@rajshrisoul‬ channel. Let the powerful verses and melodious chants fill your soul with devotion and reverence. Embrace the spiritual essence and immerse yourself in the stories of Vishnu's avatars.

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The "Dashavatara Stotram" is a Sanskrit hymn that praises the ten principal incarnations (avatars) of Lord Vishnu, who is considered the preserver in Hinduism. This Stotram highlights the significance of each avatar and their respective divine missions.

"दशावतार स्तोत्रम" एक संस्कृत भजन है जो भगवान श्री विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (अवतारों) की प्रशंसा करता है, जिन्हें हिंदू धर्म में संरक्षक माना जाता है। यह स्तोत्र प्रत्येक अवतार के महत्व और उनके संबंधित दिव्य मिशनों पर प्रकाश डालता है।

How to chant Dasavatara Stotra :
To get the best result you should chant Dasavatara Strotraearly morning after taking bath and in front of Dasavatara Idol or picture. You should first understand the Dasavatara Strotra meaning in hindi to maximize its effect.

Benefits of Dasavatara Stotra :
Regular chanting of Dasavatara Strotra gives peace of mind and keeps away all the evil from your life and makes you healthy, wealthy and prosperous.

Credits-
Language : Sanskrit
Lyrics : Adi Shankaracharya
Composer : Tushar Pargaonkar
Artist : Susmirata Dawalkar

Lyrics :
चलल्लोलकल्लोलकल्लोलिनीशस्फुरन्नक्रचक्रातिवक्त्राम्बुलिनः ।
हतो येन मीनावतारेण शङ्खः स पायादपायाज्जगद्वासुदेवः ॥ १॥

धरानिर्जरारातिभारादपारादकूपारनीरातुराधः पतन्ती ।
धृता कूर्मरूपेण पृष्ठोपरिष्टे सदेवो मुदे वोस्तु शेषाङ्गशायी ॥ २॥

उद्रग्रे रदाग्रे सगोत्रापि गोत्रा स्थिता तस्थुषः केतकाग्रे षडङ्घ्रेः ।
तनोति श्रियं सश्रियं नस्तनोतु प्रभुः श्रीवराहावतारो मुरारिः ॥ ३॥

उरोदार आरम्भसंरम्भिणोसौ रमासम्भ्रमाभङ्गुराग्रैर्नखाग्रैः ।
स्वभक्तातिभक्त्याभिव्यक्तेन दारुण्यघौघं सदा वः स हिंस्यान्नृसिंहः ॥ ४॥

छलादाकलय्य त्रिलोकीं बलीयान् बलिं सम्बवन्ध त्रिलोकीबलीयः ।
तनुत्वं दधानां तनुं सन्दधानो विमोहं मनो वामनो वः स कुर्यात् ॥ ५॥

हतक्षत्रियासृक्प्रपानप्रनृत्तममृत्यत्पिशाचप्रगीतप्रतापः ।
धराकारि येनाग्रजन्माग्रहारं विहारं क्रियान्मानसे वः स रामः ॥ ६॥

नतग्रीवसुग्रीव-साम्राज्यहेतुर्दशग्रीव-सन्तान-संहारकेतुः ।
धनुर्येन भग्नं महत्कामहन्तुः स मे जानकीजानिरेनांसि हन्तु ॥ ७॥

घनाद्गोधनं येन गोवर्धनेन व्यरक्षि प्रतापेन गोवर्धनेन ।
हतारातिचक्री रणध्वस्तचक्री पदध्वस्तचक्री स नः पातु चक्री ॥ ८॥

धराबद्धपद्मासनस्थाङ्घ्रियष्टिर्नियम्यानिलं न्यस्तनासाग्रदृष्टिः ।
य आस्ते कलौ योगिनां चक्रवर्ती स बुद्धः प्रबुद्धोऽस्तु निश्चिन्तवर्ती ॥ ९॥

दुरापारसंसारसंहारकारी भवत्यश्ववारः कृपाणप्रहारी
मुरारिर्दशाकारधारीह कल्की करोतु द्विषां ध्वंसनं वः स कल्की ॥ १०॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दशावतारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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