all about family court act 1984. explain in Hindi. फैमिली कोर्ट अधिनियम 1984 के बाबत ,संपूर्ण विवरण।

Описание к видео all about family court act 1984. explain in Hindi. फैमिली कोर्ट अधिनियम 1984 के बाबत ,संपूर्ण विवरण।

in this Hindi video, I am explaining about family court act 1984,in this video has been made for the education purpose it will also helpful for those students of law who prepare the competitive exams and law related students.
family court process, family court act 1984 in Hindi restitution of Congugal rights section 9 Hindu marriage Act . this video explain how the family courts are different from other civil courts and what is the purpose behind setting up family courts separately. what is its procedure. how much time consume in the disposal of cases.

family court act 1984 settlement and compromise procedure and divorce case settlement.
इस वीडियो में परिवारिक न्यायालय क्या होता है ,तथा वह नॉर्मल कोर्ट से कैसे भिन्न होता है। परिवार न्यायालय के अंदर समझौता की प्रक्रिया क्या होती है और समझौता कैसे कराया जाता है। उसका वर्किंग प्रोसीजर क्या है। जनरल ओवर ऑल व्यू रिगार्डिंग फैमिली कोर्ट के बारे में, इस देश में कुटुंब न्यायालय की स्थापना एवं क्या व्यवस्था है, इन सारी बातों को इस वीडियो में बतलाया जा रहा है। फैमिली कोर्ट अधिनियम 1984 एक स्टेट्यूटरी बॉडी है ।इसका उद्देश्य टू प्रमोट दी कंसिलेशन अर्थात पक्षकारों के मध्य समझौता कराना ,स्पीडी सेटेलमेंट आफ डिस्प्यूट्स, रिगार्डिंग मैरिज एंड फैमिली अफेयर्स, वुमनस को उनके लीगल अधिकार मिले ,इसका मुख्य उद्देश्य परिवार को जोड़ना होता है तोड़ना नहीं। इन न्यायालयो में अत्यंत लिबरल प्रोसीजर होता है ।जिसमें स्पीडी ट्रायल होती है तथा विशेषज्ञ जज रखे जाते हैं। जो पारिवारिक मामलों की जानकारी रखते हैं, एवं पारिवारिक विवादों के विशेष विषय के एक्सपर्ट होते हैं ।उसका प्रोसीजर फ्लैक्सिबल है इसमें साक्ष्य अधिनियम के कठोर प्रावधान लागू नहीं होते हैं तथाइसमें एक्सपेंसेस भी कम आता है ।अपनी बात को पक्षकार कोर्ट को बदला सकते हैं यह पारिवारिक न्यायालय राज्य सरकार माननीय उच्च न्यायालय के परामर्श से 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले टाउन या राज्य सरकार चाहे तो प्रत्येक जिले में परिवार न्यायालय की स्थापना कर सकती है, जिसमें मैट्रिमोनियल डिस्प्यूट्स, शादी से संबंधित मामले ,माइनर की कस्टडी, मेंटेनेंस, डायवोर्स ,डोमेस्टिक वायलेंस ,एलुमनी , वन टाइम सेटेलमेंट आदि सभी प्रकार के मामले आते हैं। इन सभी का निराकरण परिवार न्यायालय द्वारा किया जाता है।
परिवार न्यायालय का मुख्य उद्देश्य वकील एवं पक्षकारों तथा जज सभी मामले का निराकरण किसी भी तरह कराकर सुलह कराने का अंतिम तक प्रयास करते हैं ।और एक दोस्त की तरह सभी का व्यवहार रहता है। क़ोर्ट का का मुख्य उद्देश्य परिवार को जोड़ना है ,तोड़ना नहीअर्थात शादी के बाद परिवार सामंजस्य पूर्ण ढंग से शांतिपूर्ण ढंग से पूर्ववत पारिवारिक दायित्व का निर्वहन करें ,ना कि छोटी मोटी बातों को लेकर आपसी मनमुटाव से टूटे। इसलिए अंतिम स्थिति तक यही कोशिश और प्रयास करना चाहिए, कि मामला मेडिएशन सेंटर, काउंसलिंग सेंटर के मदद से पारिवारिक तालमेल से किसी भी प्रकार से समस्या का निदान हो जाए। कोर्ट की शरण में आखरी में ही मामले के निराकरण के लिए जाया जाए ऐसा मेरा सुझाव है।
विनय मुरली वर्सेस बंदना के मामले में माननीय मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पति-पत्नी अलग रह रहे थे उनके एक बच्चा भी था इस मामले में मेडिएशन सेटलमेंट को हाई कोर्ट द्वारा करा कर हर महीने पुलिस को रिपोर्ट बनाकर रजिस्ट्रार जनरल को सबमिट करने के निर्देश दिए गए थे।

#फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 में क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है तथा सिविल न्यायालय से किस प्रकार भिन्न होते हैं.


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