ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होइ||संत कबीर दास जी के दोहे-45|Sant Kabir ke Dohe|

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कबीर कहते हैं कि अगर अच्छे घर-ख़ानदान में पैदा हुए व्यक्ति का व्यवहार और उसके कर्म अच्छे न हों, तो वह उसी प्रकार निंदा का पात्र होता है, जिस प्रकार शराब भरे सोने के कलश को सज्जन निंदनीय समझते हैं।

कहने का मतलब है कि जिस प्रकार सोने का घड़ा भी अपने अंदर शराब जैसी वस्तु भरी होने के कारण अपनी महत्ता खो देता है और बुराई का पात्र बनता है, उसी प्रकार अच्छे कुल या परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति का आचरण अगर अच्छा न हो, तो वह भी लोगों की तारीफ़ का नहीं, बल्कि निंदा का पात्र बन जाता है।


ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँच न होइ ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदै सोइ ।।





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