|| Ajabgarh Fort || Most Haunted Place in India कभी अकेले मत आना यहां😱😱 वरना पछताओगे!!!

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Ajabgarh pargana was conquered by Maharaj Madho Singhji who was second son of Raja Bhagwan Das, the chief of Amber in the 16th century. Raja Ajab Singh Rajawat grand son of Raja Madho Singhji built Ajabgarh Fort between the year of 1589 to 1594 and it was named after him. The ancestors of the family migrated to Thikana of Samra during the period of Raja Deva Singhji in 1755.

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अलवर जिले के राजगढ़ तहसील में स्थित भानगढ़ और अजबगढ़ हैं. इसे इतिहास और पुराततव का खजाना कहा जाता है. भानगढ़ प्राचीन स्थान है. यह थानागाजी से 32 किमी दक्षिण में आरावली की घाटियों में निर्जन स्थान पर है. यह 'खण्डहरों के नगर' के नाम से प्रसिद्ध है. भानगढ़ के पुराततव अवशेषों से पता चलता है कि यह पूर्व पाषाण युग में आदिम मानव की बस्ती थी. इस पर पहले मेवाल मीणा शासकों का अधिकार था उनकी राजधानी क्यारा नगरी पास ही था. जनश्रुति के अनुसार अकबर के शासन काल में आमेर के राजा भगवंतदास ने 1574 ई में भानगढ़ बसाया था. बाद में यह उनके छोटे भाई माधो सिंह की राजधानी रहा. [2]

भानगढ़ परिचय
भानगढ़ राजस्थान के अलवर ज़िले में 'सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान' के पास स्थित एक पूरा का पूरा खंडहर शहर है। भानगढ़ के क़िले को आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। कहने को यहाँ बाज़ार, गलियाँ, हवेलियाँ, महल, कुएँ और बावड़िया तथा बाग़-बगीचे आदि सब कुछ हैं, लेकिन सब के सब खंडहर हैं। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं है, जिस पर छत हो, लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी दरारें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती हैं। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहाँ की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है कि यह स्थान शापित है और यहाँ भूत-पिशाचों का वास है।

इतिहास: भानगढ़ का महल आमेर के राजा भगवानदास ने 1573 ई. में बनवाया था। भगवानदास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया था। बाद में 1605 ई. तक माधोसिंह ने यहाँ आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह अकबर के दरबार में दीवान के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे- तेजसिंह, छत्रसिंह और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 ई. में एक युद्ध के दौरान युद्ध मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात् छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। मुग़लों के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगज़ेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुग़लों के कमज़ोर पड़ने पर सवाई जयसिंह ने सन 1720 ई. में इन्हें मारकर भानगढ़ पर क़ब्ज़ा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 ई. के अकाल ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी।

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