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Скачать или смотреть रामायणी साधना सत्संग*अंतिम प्रवचन*भाग ४५ (45)*

  • Bhakti me Shakti
  • 2025-11-16
  • 278
रामायणी साधना सत्संग*अंतिम प्रवचन*भाग ४५  (45)*
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Описание к видео रामायणी साधना सत्संग*अंतिम प्रवचन*भाग ४५ (45)*

Ram bhakti ‪@bhaktimeshakti2281‬
परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1797))

रामायणी साधना सत्संग
अंतिम प्रवचन
भाग ४५ (45)

परब्रह्म परमात्मा श्री राम का अपनी लीला समाप्त कर परमधाम में वापस लौटना श्री लक्ष्मण जी का सरयु नदी में सशरीर परम धाम मैं लौटना

कब हुए हैं राम, कितने राम हुए हैं, हुए भी है नहीं हुए हैं, इन बातों पर बहुत समय व्यर्थ नहीं गवाइएगा । विभिन्न प्रकार की रामायणें है । अपने देश में ही अनेक प्रकार की रामायणें हैं । अनेक भाषाओं में रामायणें हैं, फिर अनेक देशों की रामायणें है । मानो कितने ही राम हो चुके होंगें, इस प्रकार का भी विवरण आता है ।

कहते हैं जैसे जैसे भगवान राम अपनी लीला का संवर्ण करते हैं, जाने का समय होता है, उस वक्त एक अंगूठी फेंकते हैं नीचे, पृथ्वी में छिद्र हो जाता है । वह अंगूठी पृथ्वी को लांघती हुई तो पाताल में चली जाती है । ऐसा ही समय आ गया । यह कहानी आप लोगों ने सुनी हुई है इसको मैं repeat तो नहीं करूंगा, पर थोड़ा संकेत आप सबके लिए एक अंगूठी आज भी फेंकी है वह पाताल में चली गई । हनुमान जी को कहा हनुमान मेरी अंगूठी गुम हो गई है, वह नीचे चली गई है, जरा ढूंढ कर लाओ । ठीक बात है महाराज । हनुमान जी महाराज ने अपना बहुत छोटा सा रूप बनाकर उसी छिद्र के माध्यम से वह नीचे पाताल में चले गए । वहां जाकर आगे क्या होता है, उसकी बात तो करेंगे बाद में ।

पहले वापस अपने धाम लौटने का समय आ गया है, यह याद दिलाने के लिए संत महात्मा आए, महर्षि वशिष्ठ आए हैं, ब्रह्मा जी आए हैं, नारद जी आए हैं, उनको याद दिलाने के लिए महाराज आपका जाने का समय, अपने धाम में लौटने का समय हो गया है । भीतर जाने से पहले कह गए, लक्ष्मण आप पहरे पर रहना । कोई भीतर हमारे आपस के संवाद को कोई सुने ना, कोई भीतर ना आए । जो आज्ञा महाराज। लक्ष्मण जी बाहर खड़े हो गए हैं । उसी वक्त कहते हैं महर्षि विश्वामित्र आ गए और उन्हें बड़ा urgent काम । जब भी वह आते हैं बड़ा urgent ही होता है उनका काम । वह urgent काम के लिए अंदर जाना चाहते हैं। लक्ष्मण रोकते हैं, नहीं जा सकते महाराज। मुझे आज्ञा नहीं है किसी को अंदर भेजने की। यदि मुझे अंदर नहीं जाने दोगे तो मैं सारी अयोध्या को नष्ट कर दूंगा, महर्षि विश्वामित्र कहते हैं । लक्ष्मण जी महाराज सोचते हैं भीतर जाते हैं, तो मैं केवल नष्ट हूंगा और नहीं जाते तो सारी प्रजा नष्ट होगी। बेहतर यही है इनको जाने देता हूं । अंदर जाकर कहा, स्वयं चले गए है ।
कहा महाराज महर्षि विश्वामित्र आए हैं ।
सब कुछ हो चुका हुआ था । बातचीत उनकी पूरी हो चुकी हुई थी । उसके बावजूद भी लक्ष्मण ने कहा महाराज मैंने आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए मुझे सजा दी जाए ।

अरे नहीं, लक्ष्मण कोई सजा की बात नहीं हमारी बातचीत पूरी हो चुकी है । नहीं महाराज बात यह नहीं है । यदि आप मुझे सजा नहीं देंगें, या यदि मैं सजा नहीं लूंगा तो लोगों पर प्रभाव इस बात का बहुत बुरा पड़ेगा । मुझे महाराज सजा दीजिएगा। लक्ष्मण जी महाराज सरयू नदी में सशरीर अपने धाम चले जाते हैं ।

भगवान राम को पता चलता है, एक-एक करके सब चले जाते हैं । हनुमान जी महाराज पाताल में यमपुरी को कहिए,
कैसे आए ? प्रभु राम की अंगूठी ढूंढने के लिए आया हूं । एक थाल भरा हुआ अंगूठियों से उनके सामने ला कर रख दिया। लो हनुमान ढूंढो इनमें से कौन सी अंगूठी है ? राम देखने में सब एक जैसी है । यह क्या है ? अरे भाई तुम लोटोगे तो प्रभु राम आपको मिलने नहीं वाले, वे तो अपने धाम में चले गए हैं । जब भी उन्होंने अपने धाम में जाना होता है, एक अंगूठी नीचे फेंक जाते हैं। वह अंगूठियां हमारे पास इकट्ठी हो गई । कितनी इकट्ठी हो गई, देख थाल भरा हुआ
है । भगवान की लीला अपरंपार है, उनकी महिमा अपरंपार है । उनके विषय में कुछ नहीं कहा जाता, कुछ नहीं कहा जा सकता

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