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Скачать или смотреть श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत | द्रोणाचार्य और कर्ण वध (भाग - 1)

  • Tilak
  • 2022-10-22
  • 334234
श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत | द्रोणाचार्य और कर्ण वध (भाग - 1)
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Описание к видео श्री कृष्ण लीला | महासंग्राम महाभारत | द्रोणाचार्य और कर्ण वध (भाग - 1)

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here -    • दर्शन दो भगवान | Darshan Do Bhagwaan | Sur...  

Watch the story of "Dronaachaary aur karn vadh (Part - 1)" now!

Watch Janmashtami Special Krishna Bhajan - Govind Madhav Jai Jai Gopal by Dev Negi - http://bit.ly/GovindMadhavJaiJaiGopal

राजा द्रुपद यह रणनीति बनाते हैं की हमें सिर्फ़ अश्वत्थामा की मृत्यु की बात को फैलाना होगा और द्रोण ज़रूर अपने पुत्र की मृत्यु से दुःखी हो कर शस्त्र त्याग देंगे। यह झूठ बोलने के लिए राजा द्रुपद युद्धिष्ठिर को कहते हैं। युद्धिष्ठिर असत्य बोलने से मना कर देते हैं। राजा द्रुपद उन्हें अपनी योजना बताते हैं की भीम अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर देगा जिसे आप द्रोण को बता देंगे। अगले दिन युद्ध शुरू हो जाता है। द्रोणाचार्य पांडव सेना पर टूट पड़ते हैं और उन्हें मौत के घाट उतारते जाते हैं। विराट नरेश द्रोणाचार्य से युद्ध करने आता है। द्रोणाचार्य उसे हरा देते हैं तभी राजा द्रुपद द्रोणाचार्य से युद्ध करने आ जाते हैं। द्रोणाचार्य द्रुपद को हरा देते हैं और उसका वध कर देते हैं। द्रुपद की मृत्यु के बाद उसका पुत्र दृष्टध्य्म्न द्रोणाचार्य से युद्ध करने के लिए चल पड़ता है और दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। द्रोण दृष्टध्य्म्न को हरा देते हैं और उसका रथ नष्ट कर देते हैं भीम उसे अपन रथ पर बैठा लेता है। अर्जुन द्रोणाचार्य से आकर युद्ध शुरू कर देता है। गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन पर हावी हो जाते हैं।

युद्धिष्ठिर भीम को अश्वत्थामा हाथी को मारने के लिए भेज देते हैं। भीम अश्वत्थामा हाथी को प्रणाम करके क्षमा माँगने के बाद मार देता है। अश्वत्थामा हाथी के मरते ही भीम चिल्लाता है की मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। जिसकी खबर को पांडव और उसकी सेना ज़ोर ज़ोर से बोलते हैं की अश्वत्थामा मार गया है। द्रोण को इस बात पर यक़ीन नहीं होता है और वो उन्हें कहते हैं की तुम सब झूठ बोल रहे हो। गुरु द्रोण युद्धिष्ठिर से पूछते है तो युद्धिष्ठिर बताता है की अश्वत्थामा मार गया है। युद्धिष्ठिर जैसे उन्हें असलियत के बारे में बताते हैं तो पांडव सेना शंख नाद और नगाड़े बजाने लगते हैं जिसके शोर से द्रोणाचार्य पूरी बात नहीं सुन पाते हैं और अपने पुत्र की मृत्यु की बात सुन वो सदमे में अपने अस्त्र छोड़ अचेत हो कर अपने रथ पर बैठ जाते हैं। द्रोणाचार्य को इस अवस्था में देख दृष्टध्यमं उनका वध कर देता है। गुरु द्रोणाचार्य के मारने से कौरवों में हाहाकर मच जाता है। दुर्योधन ये सब सुन जब वहाँ जाता है तो उसे सारी बात के बारे में पता चलता है। दुर्योधन पांडवों द्वारा रचे षड्यंत्र के बारे में जान कर क्रोधित हो जाता है। अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु पर दुःखी हो कर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा लेता है की मैं पांडवों का वध धर्म या अधर्म किसी भी तरीक़े से उनका वध करूँगा। कर्ण से दुर्योधन मिलने आता है। युद्धिष्ठिर अर्जुन को युद्ध में अपना धैर्य पर क़ाबू करके युद्ध करने के लिए कहता है।

श्री कृष्ण घटोत्कच को बुलाते हैं और उसे आज के युद्ध में कौरवों की सेना में हाहाकर मचाने के आदेश देते हैं ताकि तुम्हें रोकने के लिए अंगराज कर्ण तुम पर अमोघ शक्ति का प्रयोग जिसे वह सिर्फ़ एक ही बार इस्तेमाल कर सकता है वह उसे तुम पर इस्तेमाल करे और पांडवों की जान बच सके। युद्ध की शुरुआत होती है। कर्ण युद्ध में पांडवों पर हमला करता है। जब कर्ण अर्जुन से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ता है तो उसे नकुल और सहदेव युद्ध के लिए ललकारते हैं। कर्ण उन्हें निरस्त्र करके उन्हें हरा देता है और उन्हें वापस जाने के लिए कहता है और अर्जुन को कर्ण से युद्ध करने आने के लिए बुलाता है। कर्ण पांडवों की सेना पर फिर से टूट पड़ता है। नकुल और सहदेव अर्जुन के पास आते हैं और उनकी बात को सुन। वह कर्ण से युद्ध करने के लिए चल पड़ता है। कर्ण अर्जुन की ओर जाता है लेकिन घटोत्कच के प्रकोप से कौरव सेना का संहार होते देख कर्ण उसे मारने के लिए रुक जाता है। कर्ण के आदेश से दुर्योधन अपने अपने मायावी राक्षसों को बुलाता है घटोत्कच जब उन्हें मार देता है। शकुनि कर्ण को घटोत्कच पर अमोघ शक्ति का इस्तेमाल करके मारने को कहते हैं लेकिन अमोघ शक्ति का प्रयोग नहीं करता तभी सूर्यास्त हो जाता है और युद्ध रुक जाता है।

शाम को शिविर में दुर्योधन कर्ण से घटोत्कच को मारने के लिए कहता है। कर्ण दुर्योधन को आश्वासन देता है की मैं घटोत्कच को कल मार दूँगा। अगले दिन फिर से युद्ध शुरू होता है और घटोत्कच कौरवों की सेना पर टूट पड़ता है। कर्ण घटोत्कच को उसकी माया के कारण नहीं मार पता। लेकिन जैसे ही घटोत्कच दुर्योधन को मारने के लिए उसका रथ उठता है तो दुर्योधन रथ से उतर जाता है। दुर्योधन के बार बार कहने पर कर्ण घटोत्कच को मारने के लिए अमोघ शक्ति का प्रयोग कर देता है। घटोत्कच मारने से पह श्री कृष्ण को प्रणाम करता है और अर्जुन की जान अमोघ शक्ति से बचाने के कार्य को पूर्ण कर मार जाता है। घटोत्कच के मारने के बाद पांडवों में दुःख के बदल चा जाते हैं श्री कृष्ण पाँवों के घटोत्कच के बलिदान देने के बारे में बताते हैं कि उसने पांडवों की रक्षा करने के लिए अपने प्रण दिए हैं। श्री कृष्ण पांडवों को घटोत्कच के बलिदान को सफल करने के लिए कहते हैं। दुर्योधन कारण से अगले दिन युद्ध की नीति पर वार्ता करता है। धृतराष्ट्र को युद्ध शुरू होने से पहले बहुत चिंता होती है और उसकी चिंता का कारण श्री कृष्ण होते हैं।

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