रुद्राक्ष महात्म्य। | Rudraksha Mahatmya. | Rudraksha The Divine Tears of Shiva. Chapter 2/2.2

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रुद्राक्ष महात्म्य। | Rudraksha Mahatmya. | Rudraksha The Divine Tears of Shiva. Chapter 2/2.2
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Shloka,
रुद्राक्षधारिणं दष्टवा, परिवादं करोति यः,
उत्पत्तौ तस्य सांकर्यमस्त्येवेति विनिश्चयः।
अर्थात,
रुद्राक्षधारी को देखकर, जो निंदा और विवाद आदी करता है, उसकी उत्पत्ति में, निश्चय ही संकरता है।

रुद्राक्षधारणदेव रुद्रो, रुद्रत्वामाप्नुयात्,
मुनयः सत्यसंकल्पा, ब्रह्मा ब्रह्मत्व मागतः।
अर्थात,
रुद्राक्ष धारण करने से ही, रुद्र भी, रुद्रत्व को प्राप्त होते हैं, मुन्नी सत्य संकल्प को, प्राप्त करते हैं, और ब्रह्मा भी, ब्रह्म तत्वों को प्राप्त हुए।

रुद्राक्षधारणा च श्रेष्ठं न किंचिदपि विध्यते।
अर्थात,
रुद्राक्ष धारण करने से, कोई वस्तु श्रेष्ठ नहीं है।

रुद्राक्षधारणे भक्तया, वस्त्रं धान्यं ददातियः,
सर्वपाप विनिमुक्तः, शिवलोकं स गच्छति।
रुद्राक्षधारिणं श्राद्धे, भोजयेत विमोदतः,
पितृलोकभवान्पोति, नात्रं कार्या विचारणा।
अर्थात,
रुद्राक्षधारि के निमित्त, जो वस्त्र और धन-धान्य देता है, वह सब पापों से मुक्त होकर, शिवलोक को जाता है, जो रुद्राक्षधारि को, प्रसन्नता से, भोजन कराता है, वह पितृलोक को, प्राप्त होता है, उसमें कर्म नहीं देखे जाते।

रुद्राक्षधारणः पादौ, प्रक्षाल्यादिभिः पिबेन्नरः,
सर्वपापविनिमुक्तः, शिवलोके महियते।
अर्थात,
जो पुरुष, रुद्राक्ष धारण किए हुए, व्यक्ति के चरण धोकर, जलपान करें, तो वह सर्वपाप मुक्त होकर, शिवलोक में पहुंचता है।

हारं वा कटकं वापि, सुवर्ण वा द्विजोतम्,
रुद्राक्षसहितं भक्तया, धारयनरुद्रतामियात।
अर्थात,
जो ब्राह्मण, हार, कंटक या सुवर्ण को, रुद्राक्ष के सहित, धारण करता है, वह रुद्रता को, प्राप्त होता है।

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